‘हसदेव अरण्य’ ये नाम सुनने पर पहले कानों में पेड़ पौधों की सरसराहट, पंक्षियों का कलरव गूंजने लगता था।आंखों के सामने हंसते मुस्कुराते हरे भरे जंगल,हिरण चीतल की कुलांचे,सियारों का एक साथ चिल्लाना,लकड़बग्घे का अचानक जंगल में दिख कर एक अजीब सी सिहरन पैदा करना,भालुओं की विशाल संख्या का भय मुक्त विचरण करना ये सब अनायास ही घूम जाते थे।

विकास की अंधी दौड़ में मदमस्त चंद लोगों की नज़र जैसे ही इस क्षेत्र में लगी वैसे ही यहां के दुर्दिन शुरू हो गए। कोयले का अकूत भंडार व जैव विविधता से परिपूर्ण ये महाजंगल ( आज ही एक कांग्रेस के मित्र ने इसे महाजंगल की संज्ञा दी) जो अब तक अपनी पावन धरा क्षेत्र में भोले भाले निश्छल आदिवासियों के साथ साथ अनगिनत जीव जंतुओं व पशु पक्षियों के लिए उनका विशाल आवास था। अब यहां विकास के नाम पर काली स्याही से वो बदरंग इतिहास की गाथा लिखने जा रहा है, जिसके लिए हमें आने वाली तर्कसंगत ऊर्जावान पीढ़ी कतई माफ़ नहीं करेगी।

छत्तीसगढ की भाजपा सरकार के समय से अदानी की दखल यहां शुरू हुई। इसका विरोध कई सामाजिक संगठनों,कुछ एनजीओ,पर्यावरण विदों ने मुखर होकर करना शुरू हुआ। इस विरोध की लहर पर सवार होकर छत्तीसगढ में कांग्रेस ने सत्ता हासिल की इस शर्त पर कि उसके सत्ता में आने के बाद हसदेव अरण्य क्षेत्र के कई गांव के हज़ारों लोगों को उनकी ज़मीन से कदापि बेदखल नहीं किया जाएगा।साथ ही यहां के पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं होगा।

समय निकला गांव वालों ने इन नेताओं पर पूरी मासूमियत के साथ भरोसा किया लेकिन सत्ता में आते ही कांग्रेस के चाल चरित्र में बहुत तेजी से परिवर्तन आया।

अब सरगुजा संभाग का एक विशाल व रमणीय जगहों से, नैसर्गिक सौंदर्य से भरा जंगल अब विलुप्त होने की कगार पर है।

राजनैतिक दल भरपूर बेशर्मी के साथ मतंग ऋषि,जमदग्नि ऋषि जैसे महान तपस्वियों की तपोभूमि को,उनके विचरण क्षेत्र को अब नष्ट होते देख कुछ करने की बजाय एक दूसरे पर कीचड़ उछाल राजनीति ही करने में अपना बड़प्पन दिखा रहे हैं।

कल ही ‘पहल’ ने सरगुजा संभाग के कद्दावर नेता व वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव के द्वारा दिए गए पत्र को उल्लेखित कर एक महत्वपूर्ण समाचार दिया था। इस पत्र को लेकर भी अब राजनीति गरमा रही है और भूपेश बघेल का वो वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है जिसमें वो कह रहे हैं कि”यदि टी एस सिंहदेव जी चाहेंगे तो वहां एक पेड़ तो क्या डगाल भी नहीं कटेगी।” मुख्यमंत्री का ये कूटनीतिक बयान वर्तमान में टी एस सिंहदेव पर भारी पड़ रहा है।इसके बाद भी टी एस सिंहदेव की साफगोई की तारीफ़ तो करनी होगी कि सरकार में रहने के बाद भी वो अपनी प्रतिक्रिया स्पष्ट रूप से रखे।लेकिन उनकी आलोचना भी आज इस बात को लेकर है कि आखिर इतने बड़े और ऊंची आर्थिक स्थिति की पृष्ठ भूमि से आने वाले सिंहदेव जी जनमानस के समर्थन में राजनीति को तिलांजलि देकर हसदेव बचाओ अभियान में मुखर होकर क्यों नहीं आए?

कल की ख़बर में प्रकाशित ये पत्र।जिससे विवाद और बढ़ा।

वहीं अब एक नज़र ‘सिंहदेव बनाम सिंहदेव की सरगुजा में सुस्त राजनीति के व्यापक असर की।’

गौरतलब है कि सरगुजा संभाग की अंबिकापुर सीट पूरे संभाग की सबसे महत्वपूर्ण सीट है,इसलिए यहां 2008 के समय जैसे ही सामान्य सीट हुई वैसे ही कांग्रेस की ओर से सरगुजा राजपरिवार के टी एस सिंहदेव का नाम कांग्रेस से तय हो गया।भाजपा ने भी सिंहदेव के मुकाबले हंसते मुस्कुराते युवा अनुराग सिंहदेव को मैदान में उतार दिया। पहला चुनाव टी एस सिंहदेव ने बहुत कम मतों से जीता उस पर चर्चा फिर कभी। यहीं से टी एस सिंहदेव का विरोध कर अनुराग सिंहदेव की राजनीति हारने के बाद भी तेजी से चमकने लगी।अगले साल पार्टी ने फिर अनुराग सिंहदेव पर ही भरोसा करना उचित समझा लेकिन इस बार मतों का अंतर अधिक था और तीसरी बार भी सिंहदेव बनाम सिंहदेव में टी एस सिंहदेव हैट्रिक बना लिए।

यहां ज़िले में विपक्ष का कमज़ोर होना भी कांग्रेस के लिए वरदान से कम नहीं है।

आज अनुराग सिंहदेव भी मुखर होकर जंगल कटाई का विरोध करने का साहस क्यों नहीं कर पाए ये भी एक गंभीर प्रश्न है जो कई लोग दबे स्वर में बोल रहे हैं।

पेड़ कटाई पर जब आज दिखावे के लिए प्रतीकात्मक रूप से मुट्ठी भर भाजपाई(ये शब्द इसलिए क्योंकि नड्डा के कार्यक्रम में हज़ारों पहुंच कर चेहरा दिखाते हैं और यहां की जनता के साथ मात्र दो ढाई सौ भाजपाई ) दोपहर को हसदेव अरण्य में पहुंच कर हाय हाय जैसे प्रचलित नारे लगाकर अपनी पीठ पर एक दूसरे से शाबाशी लेते हुए अंबिकापुर लौट आते हैं।

विरोध क्या होता है वो यहां के कांग्रेस,भाजपाई समेत तमाम बुद्धिजीवियों को बिलासपुर के नागरिकों से सीखना चाहिए जहां कुछ लोग दलगत राजनीति से ऊपर उठकर आमरण अनशन पर ही बैठ कर पूरी सरकार को अपनी मांगों को दिखाने का माद्दा रखते हैं।

विरोध के लिए साहस की मिसाल हैं बिलासपुर के चंद लोग जो बेशर्म राजनीति को आईना दिखा रहे हैं।

कल world tourism day था और आज शहीद ए आजम भगत सिंह की जयंती के साथ स्वर कोकिला भारत रत्न लता मंगेशकर की पहली जयंती है।

पूरे समाज के लिए आज का दिन कितना महत्वपूर्ण है बताने की आवश्यकता नहीं।सरगुजा में भी भगत सिंह के नाम पर हर साल कुछ लोग शहर में घूमकर रैली निकालकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर समाचार की सुर्खियां तो बनते हैं मगर जी हां मगर ये इन भोले भाले ग्रामीणों के साथ सरकार के गलत काम और नीति का विरोध करने का साहस तक नहीं जुटा पाते।

नरेंद्र मोदी आज लता मंगेशकर का गुणगान करते दिखे मगर आज के दिन वो हसदेव अरण्य क्षेत्र को संरक्षित व संवर्धित करने के लिए कोई ‘पहल’ करते तो देवलोक में वीणा पर स्वर छेड़ती लता मंगेशकर के लिए ये सबसे बड़ी श्रद्दांजलि होती।

‘पहल’ को सरकार की व आम जन मानस की प्रतिक्रिया का इंतज़ार है।

केंद्र में बैठी भाजपा सरकार और राज्य सरकार दोनों ही विकास के नाम पर इस विनाश के लिए जिम्मेदार हैं।भाजपाई कांग्रेस को दोष दे रहे हैं और कांग्रेस के लोग केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं।

ऐसी सरकारें जो अपने को धर्म निरपेक्ष,सबका साथ सबका विकास जैसे नारों से लुभाती हैं वो आज प्रकृति के इस विनाश पर मौन हैं।जबकि प्रकृति ही पूरी तरह से धर्म निरपेक्ष और सत्य है।

पुनः दुहराना उचित होगा “अदानी जी आप विश्व के सबसे अमीर बनें खुशी होगी,गर्व होगा परंतु ये सुंदर प्रकृति मात्र देश की नहीं पूरे विश्व की धरोहर है।अपने देश के ऋषियों की पावन तपोभूमि और इस मिट्टी का आप पर भी ऋण है।कहीं ऐसा न हो की आप अपने पूर्ण उत्थान के पहले ही प्रकृति के द्वारा ली जा रही इस अग्निपरीक्षा में अनुत्तीर्ण होकर लोगों के लिए उपहास का पात्र न बन जायें।”

आज विरोध में अंबिकापुर के भाजपा पार्षद आलोक दुबे जब प्रशासनिक अधिकारियों से पूरे आंकड़े के साथ बात कर रहे थे उस समय उन अधिकारियों के चेहरे पर ये मायूसी साफ़ दिखा रही थी कि सरकार का आदेश मानना प्रशासन की मजबूरी है पर अंदर से वो सब भी द्रवित ही दिखे।

इस लेख के अंत में अंतरराष्ट्रीय स्तर के साहित्यकार और आकाशवाणी के ख्यातिप्राप्त सेवानिवृत्त अधिकारी तपन बनर्जी के हसदेव अरण्य पर दिए इस कथन से करूंगा।

तपन बनर्जी जी ने कहा कि “निःसंदेह हसदेव अरण्य का क्षेत्र बहुत ही रमणीक,प्राकृतिक सौंदर्य,जैव विविधता से परिपूर्ण है।रेण नदी के इस ओर मतंग ॠषि का आश्रम था। भगवान राम भी वनवास के दौरान कोरिया से होते हुए रामगढ़ आए फिर मैनपाट की तराई के क्षेत्र से दक्षिण की ओर गए। वहीं भगवान परशुराम जी का जन्म स्थान भी इस पावन भूमि को कहीं कहीं मानने का उल्लेख मिलता है।जमदग्नि ॠषि का आश्रम भी सरगुजा में था।वन गमन को लेकर कोई रेखा खींचकर क्षेत्र को विभाजित तो नहीं किया जा सकता मगर ये पूरा क्षेत्र इन महान ऋषि मुनियों का विचरण क्षेत्र रहा है।हमें इस धरोहर को आने वाली पीढ़ी के लिए इसलिए आवश्यक है क्योंकि इन जंगलों का निर्माण मनुष्य ने नहीं किया है।ये हमें प्रकृति ने वरदान स्वरूप दिया है।”

By admin

You missed