हसदेव अरण्य पर देश के वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध राजनैतिक विश्लेषक अशोक वानखेड़े दोनों दलों पर एक के बाद एक प्रहार किए जा रहे हैं।इनकी बेबाक और तर्कसंगत,तथ्यात्मक प्रस्तुति से सरकार समेत भाजपाईयों के भी होश उड़े हुए हैं।
सही मायने में कहा जाए तो इस तरह की निर्भीक पत्रकारिता से ही बड़े परिवर्तन की नींव पड़ती है।
हसदेव अरण्य का समृद्ध जंगल,यहां की जैव विविधता को नष्ट किए जाने का गंभीर मुद्दा जैसे ही अशोक जी को पता चला उन्होंने उसी दिन से अपने यू ट्यूब चैनल जिसका लिंक ऊपर है उस पर इतने धारदार तरीके से तथ्य पेश किए हैं कि उसका जवाब देना सरकार के लिए कठिन होता जा रहा है।
छत्तीसगढ समेत अन्य राज्य में,पर्यावरण विद व आमजन में इनकी रिपोर्ट को लेकर अब एक उत्साह का माहौल है।
कोरोना काल में अपनी तल्ख टिप्पणियों से इन्होंने केंद्र की मोदी सरकार पर भी खुलकर प्रहार किया था।
वैसे भी पत्रकारिता में एक पारखी नज़र और निष्पक्षता का होना ही महत्वपूर्ण होता है।
अशोक वानखेड़े के अनुसार “हसदेव अरण्य में आज अदानी की खदान के लिए जंगल का विनाश हो रहा है। अदानी के पास दौलत की माया है इसलिए इस चकाचौंध से बच पाना सरकारों के लिए मुश्किल है।अदानी सरकारी दामाद हैं।भाजपा का मुंह बंद है इसका कारण बताने की ज़रूरत नहीं है।वहीं राहुल गांधी के शब्दों की भी कोई कीमत नहीं है।राजस्थान प्रकरण के बाद अब लगने लगा है कि इनकी
बातों को गंभीरतापूर्वक इनके शासित राज्य के नेता ही नहीं ले रहे हैं।वहीं ईडी की सुनवाई और यहां खदान की काम में तेजी के बारे में भी कनेक्शन को बताया है।”
वैसे राष्ट्रीय स्तर पर अब बड़े पत्रकार के विरोध का स्वर तेजी से मुखर होना कम से कम छत्तीसगढ जैसे राज्य के लिए इसलिए सुखद है क्योंकि कांग्रेस यहां प्रचंड बहुमत में है वहीं भाजपा मृतप्राय सी है।
ये विडंबना है कि छत्तीसगढ के सरगुजा संभाग में आज दोनों ही दल के पास आदिवासियों का हितैषी बनने का दावा ठोंकने वाले दोनों ही दलों के नेता जिसमें मंत्री डाॅक्टर प्रेमसाय टेकाम,खाद्य मंत्री अमरजीत भगत व ज़िले की सांसद रेणुका सिंह सरगुजा से गदहे के सिर से सींग की तरह गायब हैं,वहीं सरगुजा में गिनती के भाजपाई इन पेड़ों को कटने से बचाने की बजाय स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव के निज आवास को घेरकर इस तरह प्रदर्शन कर रहे हैं जैसे हसदेव अरण्य के सारे पेड़ टी एस सिंहदेव के आवास ‘तपस्या’ में ही कट रहे हों।
छत्तीसगढ में जिस तरह इस प्राकृतिक अमूल्य धरोहर को बचाने के नाम पर राजनैतिक नौटंकी की जा रही है उससे प्रकृति के साथ साथ जनता भी कुपित है।