“यह आंदोलन किसी राजनीतिक दल,विचार धारा,धर्म का समर्थन या विरोध नहीं करता। हमारा उद्देश्य केवल हसदेव के वनों को बचाना है।”
दरअसल इन पंक्तियों में न्यायधानी के चंद लोगों की संवेदनायें हैं,उनकी वो अंतहीन पीड़ा है जिसका ईलाज सरकारों के पास है मगर ये सरकारें इस पीड़ा को समझना ही नहीं चाहतीं।
समझें भी क्यों? इतनी समझ यदि रहती तो आज प्रदेश समेत देश की हरियाली मात्र कागजों पर ही नहीं सिमटी रहती।
ये लड़ाई लाखों पेड़ों को कटने से बचाने और छत्तीसगढ की धरती को गरम भट्टी में तब्दील नहीं होने देने के संकल्प की है।
तीन दिन पहले ही बिलासपुर के पर्यावरण प्रेमी जिनमें से कुछ राजनैतिक दल के भी हैं,इन सबने हसदेव अरण्य के जंगलों का बचाने का एक भागीरथी प्रयास शुरू किया वो भी गांधीवादी तरीके से।ये बात अलग है कि गांधी की विचारधारा को अपनी बातों में तरजीह देने वाले राहुल गांधी एक ओर भारत जोड़ो यात्रा निकाल रहे हैं वहीं असली सत्याग्रह यहां बिलासपुर की धरती पर हो रहा है। जबकि राहुल गांधी के दिए गए वचनों के अनुसार यहां इस सत्याग्रह की ज़रूरत ही नहीं पड़नी चाहिए थी।परंतु दुर्भाग्य से ये हो न सका।
तीन दिन से सरगुजा संभाग के सरगुजा ज़िला मुख्यालय अंबिकापुर में भी जिस तरह से प्रकृति को नष्ट होने से बचाने के नाम पर’ बेहद बेहूदा ‘ विरोध प्रदर्शन हुआ उसकी निंदा के लिए शब्द भी कम पड़ जायेंगे।
एक ओर दोनों दलों की सरकारों ने पेड़ काटने की परमिशन दे दी उसका तर्क संगत विरोध की जगह यहां के नेताओं ने इस मुद्दे को भी अपनी राजनीति चमकाने का जरिया बना डाला।
इससे सोशल मीडिया में वो हंसी के पात्र ही बन चुके हैं।
राजनीति कर रहे इन नेताओं को कम से कम इतना ज्ञान तो होना चाहिए था कि सरगुजा की जनता अब 19 वीं 20 वीं सदी की नहीं है। ‘गूगल पर आज ग्लोब ‘सिमट आया है ऐसे में प्रकृति जैसे संवेदनशील और अति महत्वपूर्ण विषय पर इन्हें सचेत रहना था।
इसी क्रम में अंबिकापुर के पार्षद आलोक दुबे जी से भी ‘पहल’की बात बेबाकी से हुई और स्पष्ट कहा गया कि आप पार्षद हैं,एक बड़े दल के हैं। यदि साहस है तो जाईए बिलासपुर में आमरण अनशन कर रहे लोगों का नैतिक समर्थन करके दिखाईए।’पहल’को खुशी है कि आज अंबिकापुर के भाजपा के आलोक दुबे और कांग्रेस के परवेज़ आलम खान ने वहां अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर हर तरह के सहयोग की बात कही।
आलोक दुबे के अनुसार
“आज बिलासपुर में हसदेव बचाओ आंदोलन के साथियों के साथ 1 घंटे क्रमिक अनशन में बैठे।इससे मन को बहुत शांति मिली ।इस आंदोलन को प्रथमेश मिश्रा जी ,अखिलेश चंद बाजपेई जी, विकास तिवारी जी, विवेक तिवारी जी एवं अन्य 143 साथी क्रमिक भूख हड़ताल पर बैठ कर आंदोलन कर रहे हैं । पिछले 4 दिनों से प्रवेश मिश्रा जी एवं अखिलेश चंद बाजपेई जी आमरण अनशन पर बैठे हैं असली संघर्ष और असली सत्याग्रह इस आंदोलन को बिना दिखावा बिना ढोंग के यह बिलासपुर के साथी ही कर रहे हैं। इन संघर्ष के साथियों को गांधीवादी तरीके से आंदोलन करते देख मन बहुत प्रसन्न हुआ।
‘पहल’भी ऐसे योद्धाओं को सैल्यूट करता है इस उम्मीद के साथ कि इनके इस सत्याग्रह को देश ही नहीं पूरा विश्व भी देखकर अपना दवाब विकास की चाह में सरगुजा संभाग की जैव विविधता नष्ट करने पर तुले अदानी पर बनाए।धनकुबेर को भी अहसास होना चाहिए कि प्रकृति से छेड़छाड़ करना इतना आसान नहीं है।