अजय जमवाल का मां महामाया की नगरी अंबिकापुर में आकर पूरे सरगुजा संभाग के ‘चतुर्दिक सरोवरों में कमल’ खिलाने की प्रक्रिया की शुरुआत आज होने वाली है।
देखना ये होगा कि जहां भाजपा फर्श पर थी उसे इनके जैसे रणनीतिकार ने वहां अर्श पर ले आया। परंतु सरगुजा संभाग में भाजपा अर्श से फर्श पर नहीं बल्कि शून्य पर आ चुकी है।
इस पतन के लिए कांग्रेस को दोष कतई नहीं दिया जा सकता। इसका श्रेय यहां के उन चंद भाजपाईयों को जाता है जो अपने कद और अपने अहम को इतना बड़ा कर लिए कि उन्हें ये गुमान हो चला है कि भाजपा आज उनकी बदौलत है।
यही सबसे बड़ा कारण है कि सरगुजा संभाग में भाजपा का पतन हुआ,अच्छे ज़मीनी कार्यकर्ताओं की लगातार उपेक्षा से कई लोग इस पार्टी से कटते चले गए।
इन सबके लिए छत्तीसगढ का भाजपा संगठन भी पूरी तरह से दोषी है साथ ही भाजपा के बड़े चेहरे भी जो ‘स्वच्छ सुंदर कमल खिलाने की जगह अपने चेहरों के पोस्टरों से हर जगह को भरते रह गए परिणामस्वरूप कमल गायब हो गया।’
बहरहाल आज सरगुजा के सच्चे भाजपाईयों की समेत यहां की त्रस्त आम जनता की निगाहें भी अजय जमवाल के इस दौरे पर टिकी हुई हैं।
सरगुजा संभाग में आज भी राजपरिवार के दिग्गज कांग्रेसी टी एस सिंहदेव की गहरी पैठ है।
यहां के भाजपाई उन्हें घेरने व दमदार विरोध की बजाए ऐसा नाटकीय विरोध करते हैं जो भाजपाईयों की ही किरकिरी करवा देता है।
सरगुजा की सड़कें बदहाल हैं,कानून व्यवस्था स्वयं स्वास्थ्य मंत्री के गृहनगर में वेंटिलेटर पर है,विकास कार्य तो छोड़िए शहर की सड़कें ही तालाब में तब्दील होती जा रही हैं और यहां के भाजपा के वो लोग जिन्हें आमजन की भावना को गहराई से समझकर जनता के हित के लिए आवाज़ उठानी चाहिए वो अपने पद और अपनी टिकट के लिए अंबिकापुर से रायपुर की ही दौड़ लगाने में मशगूल हैं।
अजय जमवाल को सरगुजा समेत राज्य के सरोवरों से गायब हो चुके कमल को खिलाने के लिए अब उन माटीपुत्रों को तेजी से आगे लाना होगा जो हाशिए पर रख दिए गए हैं।
सरोवर में क्या कमल खिलवाने में सफल होंगे अजय जमवाल।
इसके लिए पवन साय को कटघरे में खड़ा करकर कई गंभीर प्रश्न करना भाजपा के स्वास्थ्य के लिए कारगर कदम होगा।
सरगुजा ज़िला के पंचायत चुनाव में ( विधान सभा चुनाव के बाद,नगर निगम चुनाव के बाद) भाजपा के द्वारा कांग्रेस को पूरी तरह से वाकओवर दे दिया गया।इसमें कांग्रेस से मिलीभगत करने वाले उन भाजपाईयों को तलाश कर किनारे रखना संगठन का मुख्य काम होना चाहिए। जानबूझकर मजबूत प्रत्याशियों को किनारे रखा गया। यहां तक कि सामान्य सीट में भी आदिवासी प्रत्याशी को खड़ा करके बलि का बकरा बना दिया गया।इसमें सबसे दिलचस्प तथ्य ये है कि सरगुजा राजपरिवार के आदित्येश्वर शरण सिंह देव को इनकी कांग्रेस पार्टी के जनपद पंचायत राकेश गुप्ता ने अपनी जगह आसीन कर दिया। यहां भाजपा के तीन प्रत्याशी थे मगर सुनियोजित तरीके से वो वोट ही नहीं किए।
राकेश गुप्ता जिला पंचायत सदस्य पूर्व में थे। और इस बार भी थे। इन्होंने अपना ज़िला पंचायत उपाध्यक्ष का त्यागपत्र देकर आदित्येश्वर सिंह को ज़िला पंचायत का उपाध्यक्ष बनवाया।यहां भी भाजपा के कुल 3 ज़िला पंचायत सदस्य हैं पर वोट के दिन आदित्येश्वर सिंह को निर्विरोध निर्वाचित होने में अपना भरपूर सहयोग दिया।उस समय पवन साय,विष्णुदेव साय जैसे दिग्गज कहां व्यस्त थे? इस यक्ष प्रश्न का उत्तर संगठन को कठोरता के साथ तलाशने होंगे।
स्थिति ये है कि टी एस सिंहदेव की बात तो छोड़िए उनके सिपहसलार राकेश गुप्ता के सामने ही खड़ा करने के लिए भाजपा के पास कोई चेहरा नहीं है।इसी तरह अंबिकापुर के कांग्रेस के युवा नेता शैलेन्द्र प्रताप सिंह की पत्नी सरला सिंह के सामने लखनपुर विकास खंड में भाजपा कोई सामान्य सीट के बावजूद भी कोई प्रत्याशी न खोजकर राजकुमारी मरावी को प्रत्याशी बनाकर हारने के लिए विवश कर दिया।
इतनी बड़ी पार्टी की बेबशी पर आमजन स्पष्ट कहते हैं कि सबसे पहले यहां के चंद भाजपाईयों के चेहरों को पोस्टर समेत ज़िले से भी गायब करना होगा।अधिकांश कांग्रेस के नेताओं के साथ मिलकर अपनी ही पार्टी के अस्तित्व को यहां मिटाने पर तुले हैं।
आश्चर्य तो इस बात का है कि जब आमजनता यहां के उन तथाकथित भाजपाईयों के बारे में जानती है कि ये बकायदा कांग्रेस के नेताओं के साथ मिलकर हर तरह की ठेकेदारी,व्यवसाय में लिप्त हैं तो संगठन इससे अनजान कैसे हो सकता है।
विगत दिनों आदिवासी आरक्षण पर कांग्रेस के विरोध के लिए अंबिकापुर के चक्काजाम में जो कि संभाग स्तरीय था मात्र 200 से 225 लोग ही पहुंच पाए।इसी से अंदाज़ लगाया जा सकता है कि भाजपाई यहां किस कदर छोटे छोटे कबीलों में बंट चुके हैं।
अंबिकापुर समेत सरगुजा के लिए इससे बड़े दुर्भाग्य की बात क्या होगी कि जन जन की आराध्य मां महामाया का मुकुट महामाया पहाड़ दिन पर दिन उजाड़ा जा रहा है और पक्ष विपक्ष मौन हैं।
जैसे जैसे मां महामाया के मुकुट का क्षरण हुआ वैसे वैसे यहां सत्ताधीश और जनता के लिए खड़े होने का ढोंग करने वाले तमाम नेताओं के चेहरे से भी नकाब उतर रहा है ।
आखिर यहां के जिम्मेदार भाजपाई किस मुंह से सनातनी संस्कृति की दुहाई देते हैं,ये विचारणीय है।
‘पहल’ की एक ‘पहल’ महामाया पहाड़ के संरक्षण और संवर्धन की भी है। यदि इस पर अजय जमवाल की पैनी दृष्टि पड़ जाए तो यहां के नेताओं के चरित्र को वो पूरी तरह भांपकर इस सरगुजा रूपी सरोवर में कमल खिलाने का एक प्रयास ज़रूर कर सकते हैं।