अंबिकापुर शहर,इस शहर की पहचान ही जगत जननी मां महामाया के मंदिर से विश्व व्यापी है।विश्व व्यापी इसलिए क्योंकि देश ही नहीं विदेश से भी लोग यहां आकर इस सिद्धपीठ के बारे में पूछते हैं और दर्शन करते हैं।

अंबिकापुर के उत्तर पूर्व यानि ईशान कोण में स्थित ये मंदिर कई श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है।

मां महामाया के मंदिर के सामने महामाया पहाड़ है जहां से लोग मां की नगरी यानि अंबिकापुर को पूरी तरह निहार सकते हैं।

इसी पहाड़ के पीछे से सुबह सूर्य की किरणें उदित होकर पूर्व मुखी मां महामाया की मूर्ति के चरणों में प्रणाम कर अपनी दिनचर्या प्रारंभ करती हैं ये कहना ही उचित होगा।

प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर इस सिद्धपीठ के सामने स्थित महामाया पहाड़ यानि मां महामाया के मुकुट को अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से ही बुरी नज़र लगी व यहां सुनियोजित तरीके से अतिक्रमण की शुरुआत की गई।

गूगल मैप की तस्वीर। उन्नत तकनीक और साधन होने के बाद भी नेताओं और प्रशासन का मौन समझ से परे है।
महामाया पहाड़ की तराई पर बने इस स्कूल ने भी पहाड़ का विनाश किया,मगर यहां के जननेताओं की चुप्पी किसी बड़ी मिलीभगत की ओर स्पष्ट संकेत कर रही है।

अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से यहां अतिक्रमण बहुत कम मात्रा में होना शुरू हुआ।छत्तीसगढ बनने के बाद सभी सरकारों में ये बेखौफ बेधड़क होते रहा और हुक्मरान चुपचाप बैठे तमाशबीन बनकर इसे उजड़ता देखते रहे।

‘पहल’ के पास कई साक्ष्य मौजूद हैं जो यहां के विनाश में साक्ष्य के रूप में हैं।

सर्वप्रथम यहां एक निजी स्कूल ने अपना छोटा सा स्कूल खोला जो प्रकृति की सुरम्य वादियों में कोलाहल से दूर था।देश निर्माण में नींव का पत्थर बनने वाले छोटे छोटे बच्चों को देशभक्ति व समाज को नई दिशा दशा देने की सीख देने वाले इस विद्यालय ने अपने साम्राज्य को बढ़ाने के लिए इस खूबसूरत पहाड़ के एक छोटे भाग को काटकर अपना क्षेत्रफल धीरे धीरे बढ़ाने का काम सबकी आंखों के सामने ही कर डाला।

कांग्रेस,भाजपा फिर कांग्रेस-सरकारें बदलीं लेकिन अतिक्रमण बदस्तूर जारी रहा।

दुर्भाग्य कि प्रशासन के बड़े अधिकारियों का ध्यान आकृष्ट कराने के बाद भी,कुछ मीडिया में ख़बरों के बाद भी ये सब नियमानुसार काम करने की जगह मूक बधिर बनकर खूबसूरत पहाड़ के विध्वंस में अप्रत्यक्ष सहयोग ही दे रहे हैं।

सरगुजा संभाग के शिक्षाविद डाॅक्टर वीरेंद्र कुमार वर्मा जो कि कई जगहों पर महाविद्यालयों में पदस्थ रहे और महाविद्यालय के प्रिंसिपल भी रहे इन्होंने कहा ” किसी भी जगह की संपन्नता वहां की जैव विविधता व प्रकृति प्रदत्त उपहारों से ही मुख्य रूप से निर्धारित होती है।इस मामले में सरगुजा बेजोड़ है।अंबिकापुर शहर दोनों ओर पहाड़ से घिरा है पूर्व में महामाया पहाड़ और पश्चिम में पिल्खा पहाड़।परंतु महामाया पहाड़ का स्वरूप जो आज से 30 वर्ष पूर्व तक था वो खत्म हो रहा है इससे बहुत पीड़ा होती है।हमें प्रकृति की दी गई सुंदर सौगात को संरक्षित कर उसका संवर्धन करना चाहिए न कि उसका विनाश। “

शहर समेत ज़िले के कई लोग इस पहाड़ के सुनियोजित विनाश पर आहत हैं।पर वाह रे सत्ताधीश और प्रशासन इनका मौन और इस पहाड़ के विनाश पर इनकी अकर्मण्यता इस शहर के लोगों की नज़रों में बार बार खटक रही है।

ज़िले के प्रसिद्ध ख्यातिप्राप्त राष्ट्रीय साहित्यकार और आकाशवाणी के वरिष्ठ अधिकारी रह चुके तपन बनर्जी के अनुसार “अंबिकापुर में नौकरी की शुरूआत की देश के कई जगहों पर रहा।यदि बात की जाए तो जिस ऊर्जा का अनुभव मां महामाया की नगरी में होता है उसे महसूस करने का सौभाग्य मुझे मिला है।सरगुजा को प्रकृति ने दिल खोल कर अपना उपहार दिया है।हमें इसे सहेजकर रखने की आवश्यकता है।महामाया पहाड़ को मां महामाया के मुकुट की संज्ञा देना उपयुक्त होगा।इस जगह अपार ऊर्जा है।कई साधकों व तपस्वियों ने यहां साधना की है। भगवान अवधूत राम ने भी यहां की दिव्यता और अथाह ऊर्जा की बात मुझसे इंटरव्यू के दौरान कही थी।आज बहुत दुख होता है असहनीय पीड़ा होती है यहां के विनाश को देखकर। पहाड़ और इसके तराई के क्षेत्र को जिस तरह उजाड़ा जा रहा है वो पूरे शहर के लिए अभिशाप का कारक बनेगा।पूरी बरसात में यहां बारिश का पानी नीचे तक तलहटी में आता था जिससे भूजल स्तर बना रहता था।पहाड़ में जंगल था,बड़े बड़े पेड़ थे जिससे शुद्ध हवा पूरे शहरवासियों को मिलती थी लेकिन अब दुष्परिणाम सबके सामने आ रहा है।इसलिए जागरूक होकर लोगों को अब सचेत होना होगा।”

आश्चर्य है कि सुनियोजित विनाश सबके सामने हो रहा है मगर जिम्मेदार मौन हैं आखिर क्यों?

ये अनुत्तरित प्रश्न कई गंभीर परेशानियों को जन्म दे रहा है।

ज़िले के मशहूर कानूनविद प्रेम कुमार शर्मा अपने बेबाक बोल व विचारों के लिए जाने जाते हैं इनके अनुसार “पूरे शहर को शुद्ध हवा देने वाला महामाया पहाड़ सामरिक और सुरक्षा की दृष्टि से भी बेहद उपयोगी है।बधियाचुंआ से होते जो क्षेत्र श्रीगढ़ कहलाता है यहां पर मराठों ने सुरक्षा की दृष्टि से छोटा सा किला बनाया था जो उनकी दूरदृष्टि और शासक के विचार को परिलक्षित करता है।दुर्भाग्य है कि इस पहाड़ को व आसपास के क्षेत्र को काटकर बस्तियां बसाई जा रही हैं।ये हम सब के लिए विनाशकारी है।कायदे से तो इस पहाड़ में पेड़ व खुशबूदार फूलों को भरपूर मात्रा में लगाना चाहिए जिससे जब मंद मंद हवा चले तो उस खूश्बू का अहसास हम सब शहरवासियों को हो।प्रशासन की भूमिका इस विषय पर बेहद संदिग्ध है क्योंकि आजकल गूगल मैपिंग है,तकनीक है उसके बाद भी संज्ञान में लाने पर कोई कार्यवाही नहीं होना ये सीधे सीधे कानून का घोर उल्लंघन है।इसमें बड़े अधिकारियों का दोष भी माननीय न्यायालय में प्रमाणित हो सकता है।”

देखा जाए तो हर धर्म,हर वर्ग के लोगों के लिए ये पहाड़ दशकों से उन्हें जीवन देते आया है यदि अभी भी ध्यान नहीं दिया गया तो ये सुंदर और बुरी नज़र का शिकार बन चुका महामाया पहाड़ जानबूझकर बिगाड़ते भौगोलिक स्वरूप के बाद कहीं एक इतिहास न बन जाए।

‘पहल’ के पास कई साक्ष्य मौजूद हैं साथ ही प्रकृति की इस अमूल्य धरोहर के लिए ‘पहल’ की ‘पहल’ अनवरत चलती रहेगी।

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