किसी शहर में सिद्धशक्तिपीठ का होना वो भी प्राकृतिक सौंदर्य के बीच तो ये सोने पे सुहागा जैसा होता है।

उत्तरी छत्तीसगढ के सरगुजा संभाग के मुख्य शहर अंबिकापुर में मां महामाया का प्रसिद्ध मंदिर है।कभी ये जगह एकदम सुनसान थी।बस दूर से यहां तक कि अंबिकापुर से लुचकी घाट होकर गुजरने वाले वर्तमान राष्ट्रीय राजमार्ग से भी मां महामाया मंदिर का शीर्ष स्पष्ट दिख जाता था।

आबादी बढ़ी जनसंख्या का दवाब बढ़ा इससे धीरे धीरे यहां भी बस्तियां बसने लगीं।स्वच्छ शहर का खिताब भी अंबिकापुर के नाम आया जिससे एकाएक ये देश में अपनी पहचान बनाने वाला शहर बन गया।

एक दृष्टि इस शहर की और विश्व प्रसिद्ध सिद्ध शक्तिपीठ मां महामाया के मंदिर और इस पवित्र भूमि पर दृष्टिगोचर करें तो कई संयोग आश्चर्यचकित कर देने वाले हैं।

मां महामाया की दिव्य मूर्ति।मंदिर के ठीक सामने महामाया पहाड़ है।

7 सितंबर 2013 को अंबिकापुर के पीजी काॅलेज मैदान पर तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ( जब मोदी के चेहरे को सामने रखकर 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया गया ) की विशाल सभा के लिए लाल किले की परिकल्पना की गई। ये लाल किला प्रतीकात्मक रूप से मां महामाया की नगरी अंबिकापुर में पूर्ण विश्वास के साथ इस कल्पना के आधार पर बनाया गया कि महामाया नगरी अंबिकापुर से मोदी यहां लालकिले से भाषण देंगे और ये भाषण प्रधानमंत्री के प्रतीक के रूप पर होगा।मोदी आए मां महामाया का नाम लिया और भाषण दिया।सबसे बड़ा आश्चर्य तो तब हुआ जब 2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिला और साल भी नहीं बीतने पाया,मोदी ने 15 अगस्त 2014 को लाल किले से प्रधानमंत्री के रूप में भाषण दिया।

इसी से स्पष्ट समझा जा सकता है कि कल्पना और यथार्थ का समन्वय भी इस नगरी से संभव है।

परम पूज्य गुरू तेगबहादुर जी पर अथक परिश्रम व पूरे मनोयोग से महत्वपूर्ण किताब लिखने वाले प्रसिद्ध ख्यातिप्राप्त साहित्यकार तपन बनर्जी कहते हैं कि “संयोग से मुझे आकाशवाणी में रहते हुए

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