छत्तीसगढ के सरगुजाज़िले में लंबे समय से मां कुदरगढ़ी एल्यूमिनियम प्लांट को चिरंगा में स्थापित करने का विरोध चल रहा है।इसी कड़ी में आज की घटना महत्वपूर्ण है।दरअसल सरगुजा ज़िला प्रशासन द्वारा गांव में शिविर लगाकर लोगों की समस्याओं को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है।इसी कड़ी में बतौली विकासखंड के ग्राम करदना में भी शिविर लगाया गया था। जहां सैकड़ों की संख्या में ग्रामीणों ने इस शिविर का विरोध करते हुए टेंट तंबू सहित पुलिस के आला अधिकारियों को मौके से खदेड़ दिया। दरसअल सरगुजा जिले के ग्राम चिरंगा में खुलने वाले एलुमिना रिफाइनरी फैक्ट्री के विरोध में ग्रामीणों द्वारा लगातार विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। वहीं आज जिला प्रशासन द्वारा खुलने वाले फैक्ट्री के आसपास के गांवों में शिविर का आयोजन कर लोगो की समस्याओं को सुनने की बात प्रशासन कह रही है। वहीं दूसरी तरफ ग्रामीणों कहा कि ज़िला प्रशासन के शिविर के माध्यम से माँ कुदरगढ़ी एलुमिना रिफाइनरी के सौजन्य से सामान का विरतण किया जा रहा है,जिसका विरोध आज ग्रामीणों में देखने को मिला।

जमकर लगे अमरजीत भगत मुर्दाबाद और कांग्रेस सरकार मुर्दाबाद के नारे।ज़िला प्रशासन पर भी उठ रहे सवाल।

जहाँ ग्रामीणों ने सैकड़ो की संख्या पहुँचे पुलिस बल और शिविर में शामिल होने पहुँचे आलाधिकारियों को भी गांव से भगा दिया गया है। बहरहाल पिछले 4 वर्षों से ग्रामीणों के द्वारा मां कुदरगढ़ी एलुमिना रिफाइनरी को लेकर विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है,बावजूद इसके ग्रामीणों की सुनने के लिए कोई तैयार नहीं है।

सबसे बड़ा आश्चर्य तो भाजपा के आदिवासी नेताओं व ज़िले में तथाकथित सक्रिय नेताओं की चुप्पी से है।इतने बड़े मुद्दे और ग्रामीणों के लगातार विरोध के बाद भी भाजपाई इस मुद्दे पर मुंह बंद कर के बैठे हैं।

गौरतलब है कि सरगुजा सांसद श्रीमती रेणुका सिंह तो बकायदा पिछले साल इन ग्रामीणों के पास पहुंचकर इनका साथ देने का वादा करके आई थीं लेकिन उसके बाद इन आंदोलन रत ग्रामीणों के बीच सासद महोदया दुबारा पलटकर तक नहीं देखीं इसे लेकर भी तरह तरह की चर्चायें गरम हैं।

प्लांट की आड़ में कीमती ज़मीन का कौड़ियों के भाव में प्लांट मालिक अधिग्रहण करने के लिए प्रक्रिया में जुटा हुआ है। एक तरह से सीधे सीधे ग्रामीणों के हित के साथ पर्यावरण की घोर अनदेखी की जा रही है।

अभी कुछ महीने पहले ही यहां खाद्य मंत्री अमरजीत भगत को यहां के ग्रामीणों ने इस कदर घेर लिया था कि पुलिस के भी होश उड़ गए थे।बड़ी मुश्किल से मंत्री अमरजीत भगत को निकालकर ले जाया गया था।

ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि जल जंगल ज़मीन के लिए संघर्षरत ये ग्रामीण कम से कम प्रकृति के महत्व को तो समझते हैं लेकिन राजनैतिक दल और जिम्मेदार लोग इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर इनके साथ खड़े होने की बजाय मौन हैं, ये गंभीर प्रश्न है।

लगातार ग्रामीणों के विरोध के बाद भी ज़िला प्रशासन भी पारदर्शिता के साथ तथ्य रखने से आखिर क्यों बच रहा है।

ये तो तय है कि एक बड़ा वोट बैंक लगभग 13 हज़ार से 15 हज़ार वोट भाजपा के नेताओं की अदूरदर्शिता के कारण उसकी झोली में आने के पहले ही बाहर गिरता दिख रहा है।

बहरहाल चुनावी वर्ष को देखते हुए इन ग्रामीणों से नाराज़गी कांग्रेस के अमरजीत भगत के लिए मुसीबत का पैगाम लाएगी ये तो तय है मगर भाजपा के कुछ दिग्गज नेताओं की रहस्यमय चुप्पी इस गंभीर मुद्दे पर कई गंभीर सवाल खड़े कर दे रही है।

वहीं कुछ लोग इस मुद्दे को किसी बड़े संगठन या एनजीओ के पास ले जाने की ‘पहल’ जल्दी ही करने वाले हैं।

गांव के आसपास सैकड़ो की संख्या में पुलिस तैनाती से गांव में भी दहशत का माहौल व्याप्त है।

एसडीएम को भी लौटना पड़ा।

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