आर एस एस तो सांस्कृतिक संगठन है।उसको तो राजनीति से लेना देना नहीं है 2023 के चुनाव की रणनीति वो क्यों बनायेंगे।

भूपेश बघेल पर अभी से आगामी विधान सभा चुनाव का तनाव दिखने लगा है।आज आर एस एस को लेकर जिस तरह का बयान आया उससे साफ़ है कि बघेल जी समझ सब रहे हैं पर बोल कुछ रहे हैं।
जब 1925 से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गठन हुआ तब से यह बताया जा रहा है कि यह सांस्कृतिक संगठन है लेकिन इनकी गतिविधियां सांस्कृतिक संगठन की तरह नजर ही नहीं आती यह तो भाजपा का और भाजपा नेताओं के शब्दों के अनुसार पित्र पुरुष संस्था है।
भाजपा के प्रदेश संगठन से लेकर केंद्रीय संगठन तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भाजपा को कंट्रोल करती है इसका उदाहरण है
“प्रदेश भाजपा के संगठन महामंत्री का पद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक जो डेपुटेशन में भाजपा में आता है उसे ही दिया जाता है प्रदेश महामंत्री संगठन के सामने भाजपा के निर्वाचित प्रदेश अध्यक्ष सिर्फ मुखौटा रहता है”
ठीक इसी तरह भाजपा के केंद्रीय संगठन में राष्ट्रीय संगठन महामंत्री राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से डेपुटेशन में आए व्यक्ति ही रहते हैं और यह भाजपा के केंद्रीय संगठन को नियंत्रित करते हैं जैसे वर्तमान में भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री हैं बीएल संतोष जो 10 सितंबर से 12 सितंबर तक रायपुर में होने जा रही है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के महत्वपूर्ण बैठक में उपस्थित रहेंगे इसके साथ ही भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रसाद नड्डा भी इस बैठक में उपस्थित रहेंगे।
सांस्कृतिक संगठन की राष्ट्रीय बैठक में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का क्या काम…?

इससे साफ है कि छत्तीसगढ में अब आर एस एस भाजपा को चुनाव के लिए अभी से ज़मीनी स्तर पर तैयार करने कसावट की रूप रेखा तैयार कर ली है।

सही भी है क्योंकि अभी भी छत्तीसगढ में भाजपा के कई नेता हवा में ही हैं।उन्हें ज़मीन और ज़मीन पर खड़े कार्यकर्ताओं की सुध लेने की फुर्सत शर्मनाक हार के बाद भी नहीं है।

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