देखिए काॅपी। बेहद महत्वपूर्ण मामले पर हाईकोर्ट ने जनहित याचिका स्वीकार की।

छत्तीसगढ के कद्दावर कांग्रेस के नेता और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव को भी पार्टी बनाते हुए अंबिकापुर की एक सामाजिक संस्था तरू नीर ने उच्च न्यायालय बिलासपुर में एक जनहित याचिका दाखिल की है।23 मार्च को उच्च न्यायालय में यह जनहित याचिका स्वीकार कर छत्तीसगढ शासन व स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव को भी पत्र प्रेषित किया गया है।

इस मामले में स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव को व्यक्तिगत रूप से या वकील के माध्यम से उच्च न्यायालय में अपना जवाब प्रस्तुत करने को कहा है।

चूंकि मामला राजनैतिक दिग्गज और सरगुजा राजपरिवार के टी एस सिंहदेव से जुड़ा है इसलिए इस मामले पर राजनीतिक फ़िजा भी पूरी तरह गरमा रही है।

भाजपा पार्षद आलोक दुबे के द्वारा जारी विज्ञप्ति।

वहीं इस मामले पर टी एस सिंहदेव ने कहा है कि”मामला माननीय न्यायालय में है इस कारण इस मामले पर कुछ बोलना उचित नहीं है।इसके पहले इस मामले को ग्रीन ट्रिब्यूनल में भी उठाया गया था जिसमें मामला उठाने वाली पार्टी वहां हार

वहीं इस मामले पर टी एस सिंहदेव ने कहा है कि”मामला माननीय न्यायालय में है इस कारण इस मामले पर कुछ बोलना उचित नहीं है।इसके पहले इस मामले को ग्रीन ट्रिब्यूनल में भी उठाया गया था जिसमें मामला उठाने वाली पार्टी वहां हार

इस मामले पर भाजपा पार्षद आलोक दुबे ने बकायदा एक विज्ञप्ती जारी की और ‘पहल’ को बतलाया कि “ये मामला सीधे तौर पर जनहित से जुड़ा है। मौलवी बांध में सिंहदेव जी के द्वारा ज़मीन बेची गई है जो एक बड़ा भूभाग है लेकिन यहां के पुराने समय से स्थापित जल स्रोत तालाब का क्षरण हुआ है।ये बेहद गंभीर मामला है।इससे स्पष्ट है कि उस समय के तत्कालीन सरगुजा कलेक्टर ने दवाब में आकर वहां ज़मीन बेचने की अनुमति दी है।”

वहीं इस मामले पर टी एस सिंहदेव ने कहा है कि”मामला माननीय न्यायालय में है इसलिए इस पर कुछ भी बोलना उचित नहीं है।इसके पूर्व भी मामले को ग्रीन ट्रिब्यूनल में उठाया गया था और वहां सामने वाला पक्ष हार चुका है।अब ये मामला यहां माननीय उच्च न्यायालय में है और हम अपना पक्ष प्रस्तुत करेंगे।”

आमतौर पर शांत रहने वाले टी एस सिंहदेव से जब भाजपा के पार्षद आलोक दुबे की विज्ञप्ति का उल्लेख कर ‘पहल’ ने पूछा तो सिंहदेव ने कहा कि “ये वही आलोक दुबे हैं जो पहले कांग्रेस पार्टी में थे।परंपरागत रूप से ये विरोध करते आ रहे हैं।अब मामला न्यायालय में है तो इस बारे में बात करना उचित नहीं है।”

बहरहाल मामला हाई-प्रोफाइल है और देखना ये है कि छत्तीसगढ शासन इस मामले में किस तरह अपनी भूमिका निभाता है।

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