पहल न्यूज़ का बड़ा खुलासा: प्रदेश के पूर्व गृहमंत्री एवं पूर्व राज्यसभा सांसद रामविचार नेताम का सामने आया संविधान विरुद्ध बयान,बेटी के नाम पहाड़ी कोरवा परिवार की जमीन खरीदे जाने के सवाल पर कह दी बड़ी बात,प्रशासन ने अब तक शुरु नहीं की जांच,पीड़ित पहाड़ी कोरवा परिवार ने की ज़मीन वापस दिलाने की मांग की। कहा दलालों ने किया सौदा और पिता को बरगलाकर करा दी रजिस्ट्री।
रायपुर/जशपुर,11 अप्रैल 2023
जशपुर जिले के बगीचा विकासखंड के पाठ इलाके में पहाड़ी कोरवा की लगभग साढ़े बारह एकड़ की भूमि बीजेपी के कद्दावर नेता रामविचार नेताम की पुत्री के नाम रजिस्ट्री कराए जाने के बाद पहाड़ी कोरवाओं की हितैषी बताने वाली भाजपा अपने ही पार्टी के नेता के कारण बैकफुट पर जा रही है।पहाड़ी कोरवा पीड़ित परिवार को जब पता चला कि उनका सब कुछ नेता जी की बेटी के नाम हो गया है तो वे अपने को ठगा सा महसूस कर रहे हैं।परिवार का आरोप है कि स्थानीय दलालों के साथ षड्यंत्र कर उनकी ज़मीन की रजिस्ट्री करा ली गई है । अब उन्हें उनकी जमीन वापस चाहिए।मामले में भाजपा नेता रामविचार नेताम का बयान भी सामने आया है।
प्रदेश के पूर्व गृहमंत्री एवं पूर्व राज्यसभा सांसद रह चुके भाजपा के कद्दावर नेता रामविचार नेताम को अपने ही प्रदेश के अनुसूचित जनजातियों के बारे में जानकारी नहीं है।बगीचा के झुमराडुमर में चार कोरवाओं की संदेहास्पद मृत्यु की जांच करने आये भाजपा के जांच टीम के सदस्य रामविचार नेताम से जब उनकी बेटी निशा सिंह के नाम पहाड़ी कोरवा की जमीन खरीदे जाने का सवाल किया गया तो उन्होंने दावे और अपने साथ आए समर्थक के साथ लाये प्रमाण को दिखाते कहा कि प्रदेश में पहाड़ी कोरवाओं की ज़मीन की खरीद बिक्री पर रोक है और उनकी ज़मीन खरीदने हेतु राज्य सरकार से परमिशन लेना होता है।उन्होंने पहाड़ी कोरवा की ज़मीन नहीं खरीदी है बल्कि दिहाड़ी कोरवा की जमीन खरीदी है। इसके लिए किसी परमिशन की कोई आवश्यकता नहीं है।
बहरहाल नेताम के बयान के बाद यह सवाल उठना लाजिमी है कि नेता जी जो बोल रहे हैं क्या प्रदेश में वही कानून है या प्रदेश का कानून कुछ और बोलता है ।

पीड़ित परिवार के बच्चे की स्कूली शिक्षा का एक प्रमाणपत्र जिसमें जाति पहाड़ी कोरबा उल्लेखित है और नीचे सरकारी अधिकारियों के हस्ताक्षर , मुहर समेत अंकित हैं।
ज़मीन के दस्तावेज में भी ढुढरू पहाड़ी कोरबा ही उल्लेखित है।

नान्ह के पिता ढुढरु का नाम जमीन के दस्तावेज में जाति पहाड़ी कोरवा उल्लेखित है।
1939-40 मिसल बंदोबस्त में भी पहाड़ी कोरवा उल्लेखित है।ढुढरु के पिता बिसना की जाति भी पहाड़ी कोरवा उल्लेखित है।बिसना मतलब नान्ह के दादा।


क्या है कानून
देश के अनुसूचित जनजातियों की सूची भारत के संविधान के अनुच्छेद 342 में दिया गया है और वही अनुसूची छत्तीसगढ़ भू राजस्व संहिता की धारा 165(6) में दी गई है। उक्त अनुसूची में पहाड़ी कोरवा और दिहाड़ी कोरवा नाम की किसी अनुसूचित जनजाति का नाम अलग अलग उल्लेखित नहीं है।

वास्तव में उक्त अनुसूची में मात्र कोरवा जनजाति का उल्लेख है।जो सूची में 27 नम्बर पर अंकित है।अब प्रश्न यह उठता है कि नेताम के द्वारा जो कानून बताया जा रहा है वह किस कानून की किताब में है यह समझ से परे है।
सर्वोच्च न्यायालय ने दिया है फैसला
कानूनी प्रावधान है छत्तीसगढ़ भू राजस्व संहिता 1959 की धारा 170(ख) में उल्लेखित है वह क्या है जिसमें लिखा गया है आदिम जनजाति के सदस्य की ऐसी भूमि का जो कपट द्वारा अंतरित की गई थी।विदित हो कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2003 में भाई जी बनाम थांदला मध्यप्रदेश में इस कानून की व्याख्या विस्तार से करते हुए कहा है कि इस कानून का उद्देश्य जनजाति को किसी सामान्य वर्ग के कपट से ही बचाना नहीं अपितु जनजातिय वर्ग के धनाढ्य वर्ग के कपट से भी गरीब जनजाति के सदस्य को बचाना है।
बहरहाल देखना यह होगा कि पाठ क्षेत्र में कोरवा जनजाति की कृषि भूमि का अंतरण किया गया है तो इस पर एसडीएम ने कोई कार्यवाही क्यों नहीं की।नियमानुसार सम्बंधित अनुविभागीय अधिकारी राजस्व के द्वारा इस विषय पर स्वतः संज्ञान लेकर उक्त कानून के तहत कार्यवाही की जानी चाहिए।
उल्लेखनीय है कि इसके पूर्व भी छत्तीसगढ़ भू राजस्व संहिता के उक्त प्रावधान को अनदेखा करते हुए प्रदेश के मंत्री अमरजीत भगत के द्वारा ग्राम हर्रापाठ के कोरवाओं की 25 एकड़ जमीन अपने पुत्र के नाम पर कराया गया था।किंतु मामले के जोरदार विरोध होने के बाद और कानूनी स्थिति समझने के बाद अमरजीत भगत के द्वारा पुनः रजिस्ट्री कर कोरवाओं को उनकी भूमि वापस किया जा चुका है ,अब देखने वाली बात यह है कि क्या कांग्रेस इस विषय को मुद्दा बनाकर रामविचार नेताम से कोरवाओं की भूमि वापस कराती है नहीं।हांलाकि बगीचा एसडीएम ने मामले में जांच की बात कही है।

पीड़ित परिवार के पुत्र ने बकायदा कुछ लोग के नाम लिए इससे साफ है कि जनजातियों की ज़मीन पर अब भू माफियाओं की नज़र पड़ चुकी है।पीड़ित परिवार ज़मीन वापस चाह रहा है।
परिवार की बुजुर्ग महिला ने बताया कि ज़मीन वापिस चाहिए। गलत तरीके से कागज़ात बनवाने का आरोप। ये परिवार अब मजदूरी करने को मजबूर है।
पूर्व मंत्री और सांसद रामविचार नेताम की दलीलें गले उतरने वाली नहीं हैं। अपने साथ लाए समर्थक के द्वारा वो कागजात दिखाने की कोशिश कर कहीं बड़ी मुसीबत तो मोल नहीं ले रहे।

कोरबा जनजाति में कई कोरबा जो प्रकृति के बीच व पहाड़ व पाट क्षेत्र में रहते हैं उन्हें पहाड़ी कोरबा की संज्ञा दी गई है।इन्हें राष्ट्र पति का दत्तक पुत्र भी कहा जाता है।

यदि इन सब प्रमाणों को झुठलाते हुए नेताम जी के बयान को मान भी लें तो इससे भी अधिक बड़ा प्रश्न ये कि बलरामपुर ज़िले के सनावल निवासी को आखिर जशपुर ज़िले में इतनी ज़मीन खरीदने की क्या आवश्यकता पड़ गई? सब काम इतनी जल्दी कैसे हो गए? क्या ये अब चरितार्थ हो रहा है कि आदिवासियों के नाम पर,जनजातियों के हित के नाम पर उनकी भलाई के बड़े बड़े दावे करने वाले कुछ तथाकथित बड़े आदिवासी नेता ही इनकी संपत्ति पर भी अपनी गिद्ध दृष्टि जमाए मौके की ताक पर रहते हैं और मौका लगते ही इन्हें भी अपना शिकार बनाने से परहेज नहीं करते।

पहल ने जब इस बाबत कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर से बात की तो उन्होंने स्पष्ट कहा “ये मामला सीधे तौर पर जनजातिय हित से जुड़ा हुआ है। पीड़ित परिवार न्याय की मांग कर रहा है।रामविचार नेताम के परिजन के नाम ये ज़मीन कूटरचना करके ली गई। हम इस पर कार्यवाही की मांग के लिए पीड़ित परिवार के साथ खड़े हैं और अडिग हैं।हम भी इस गंभीर मामले की पूरे तथ्यों के साथ शिकायत कर रहे हैं।”

वाकई इस मामले पर भाजपा के संगठन को भाजपा की किरकिरी से बचने के लिए स्वयं हस्तक्षेप कर दूध का दूध और पानी का पानी तत्काल कर आदिवासियों व जनजातियों के बीच एक उचित ‘पहल’ करना चाहिए। ये तो तय है कि प्रमाण अभी और भी सामने आने वाले हैं जिससे इस मुद्दे पर समय रहते ठोस निर्णय न लेने पर भाजपा को बड़ा नुकसान संभावित है।वहीं यदि कड़ा एक्शन अपनी ही पार्टी के धनपिपासु नेताओं के लिए भाजपा का केंद्रीय संगठन लेगा तो उसका फायदा भी भाजपा को भरपूर मिलेगा।

अंदरखाने की मानें तो रायपुर कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में ही लोग गुपचुप चर्चा कर कह रहे हैं कि यदि समय रहते विवादित नेताओं और जनाधार खो चुके नेताओं को पार्टी ने ठिकाने नहीं लगाया तो ये पार्टी के लिए ही बेहद नुकसानदायक साबित होगा।

वहीं कुछ लोग इस मामले की शिकायत सीधे सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय से करने का मन भी बना चुके हैं।

जशपुर कलेक्टर ने भी ज़मीन को पहाड़ी कोरबा के नाम होना बताया है।

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