ये दृश्य कल यानि 16 अप्रैल का है।जेसीबी पहाड़ी क्षेत्र में धड़ल्ले से चल रही है।प्रशासन को सुध नहीं।
वीडियो समेत प्रकृति से जुड़े इस महत्वपूर्ण मुद्दे को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर छत्तीसगढ के मुख्यमंत्री समेत अन्य को भी ट्वीट किया है।

छत्तीसगढ का अंबिकापुर शहर अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए जाना जाता रहा है। इस पर अब पूरी तरह ग्रहण लग चुका है।ये ग्रहण ‘राहु-केतु’ नाम के ग्रह ने नहीं बल्कि संविधान के बनाए नियम कानून के जानकारों,उनका पालन कराने वाले लोगों समेत हर जागरूक इंसान के आंखें मूंद लेने के कारण लगा है।

स्थिति इतनी बदतर हो चुकी है कि वोट बैंक के लालच में सत्ता चाहने वाले तथाकथित नेता इस मामले पर सब कुछ जानकर भी अनजान बनने का ढोंग कर रहे हैं वहीं साल में एक दो बार प्रकृति के संरक्षण पर कार्यक्रम करा देने वाला प्रशासन पूरी तरह धृतराष्ट्र की भूमिका पूरे मनोयोग से निभाकर न जाने सरगुजावासियों के लिए कौन सी महाभारत करवाने को ललायित है।

दरअसल अंबिकापुर शहर और मां महामाया का मंदिर ये नाम छत्तीसगढ की सीमा से भी परे जाकर लोगों की ज़ुबान पर अपने आप ही आ जाते हैं।पुराने शहर के पूर्वोत्तर में जगतजननी मां महामाया के मंदिर में देश के कई राज्य से श्रद्धालु आते हैं।मंदिर के ठीक सामने मां महामाया का पहाड़ है जो कभी इतना खूबसूरत और नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर था कि निगाहें रूक कर रह जाती थीं।शहर बड़ा हुआ,जनसंख्या बढ़ी,छत्तीसगढ राज्य बना।लेकिन इस पहाड़ का विनाश अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से ही शुरू हो चुका था जो छत्तीसगढ के बनने के बाद बहुत तेजी से हुआ।

ये वीडियो आज से एक साल पुराना है मगर हालात सुधरने की अपेक्षा दिन पर दिन बिगड़ते ही जा रहे हैं।

प्रकृति सदैव धर्मनिरपेक्ष रहती है ये जानते हुए भी इस पहाड़ व इसके तराई क्षेत्र की ज़मीनों पर कब्जे के लिए हर वर्ग के लोग इस तरह कूद पड़े कि कभी प्राकृतिक सुंदरता के लिए सुविख्यात इस पहाड़ का चीरहरण खुलेआम कोई भी कहीं से आकर कर रहा है। दुर्भाग्य ये कि सब कुछ अपनी खुली आंखों से देखकर प्रशासन धृतराष्ट्र बना हुआ है और राजनेता अपनी राजनीति चमकाने के लिए बीच बीच में ये मुद्दा उठाकर बहुत चालाकी से आने वाले चुनाव के लिए छोड़ देते हैं।

शहर व ज़िलों के लिए एक सत्याग्रह हुआ सड़क सत्याग्रह मगर उस सत्याग्रह के कर्ताधर्ताओं को इस पहाड़ पर बड़े बड़े वृक्ष उखाड़कर यहां पहाड़ काटकर मैदान बना दिया जा रहा है वो कभी नहीं दिखा।इसी से समझा जा सकता है कि यहां के राजनेता प्रकृति के संरक्षण के लिए कितने सजग हैं।वहीं इस मामले पर न्यायालय में जनहित याचिका लगाने की बातें और डींगें भी कुछ लोग बीच बीच में हांकते रहे मगर नतीजा ये हुआ कि याचिका तो आज तक नहीं लग पाई हां पहाड़ी क्षेत्र का विनाश निर्बाध गति से जारी रहा।

बहरहाल ‘पहल’ के पास कई महत्त्वपूर्ण और इतने गंभीर प्रमाण हैं जो इस मुद्दे पर आंख बंद किए बैठे और इस पर राजनीति करने वालों के लिए निश्चित तौर पर भारी पड़ेंगे।

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