कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस की जीत और भाजपा की हार का विश्लेषण
- भाजपा के वोट शेयर को देखें तो मात्र आधे प्रतिशत की कमी आई है, भाजपा को राज्य में 38 सीटों का नुकसान हुआ है, लेकिन पार्टी 2018 के अपने 36.4% वोटशेयर के करीब रहने में कामयाब रही है.
वहीं 2018 के विधानसभा चुनावों की तुलना में कांग्रेस ने कर्नाटक में अपने वोटशेयर में लगभग 5% की वृद्धि की है जब राज्य में सबसे पुरानी पार्टी को 38.1% वोट मिले थे.
2. कांग्रेस को बड़ी जीत मिली क्योंकि पुराने मैसूर क्षेत्र में जेडीएस को 8% वोट शेयर गंवाना पड़ा वहीं भाजपा ने कित्तूर कर्नाटक क्षेत्र में 4% वोट शेयर खो दिया लेकिन बेंगलुरु में 6% की बढ़त हासिल की.
3. इसी तरह चुनाव के आखिरी सप्ताह में जाति और धर्म पर ध्रुवीकरण करने की भाजपा की कोशिश से ज्यादा फायदा भी कांग्रेस को मिला क्योंकि हिंदू वोटों के मुकाबले मुस्लिम वोट के 13 प्रतिशत और ईसाई वोट के 2 प्रतिशत वोट पूरी तरह कांग्रेस के खाते में चले गए
4. हिंदू जातियों की बात करें तो दलित वोट जिसके बड़े नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस ने राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जिससे हैदराबाद कर्नाटक और उत्तर कर्नाटक में दलित वोट भी कांग्रेस को मिला और सीटें भी बढ़ी. 2018 के चुनाव में भाजपा ने कुछ हद तक दलित वोट खासकर मडिगा जाति का वोट हासिल किया था.
5. इसी तरह भाजपा अपने परंपरागत वोट लिंगायत जिसका लगभग 65 प्रतिशत हर विधानसभा चुनाव में पार्टी को मिलता रहा है, इस बार भी मिला पर कई सीटों पर कांग्रेस ने सिर्फ लिंगायत समुदाय को टिकट देकर चुनाव में जीत हासिल की. कांग्रेस ने 51 लिंगायत उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, जिनमें से 34 जीते हैं। 70% स्ट्राइक रेट!
6. कांग्रेस के टिकट पर वोक्कालिगा के 21 उम्मीदवार जीते हैं. लिंगायत और वोक्कालिगा को मिला दें तो 55 सीटों पर जीत हासिल की है. 16वीं विधानसभा में कांग्रेस की ताकत का 40% सिर्फ लिंगायत और वोक्कालिगा हैं, जबकि चुनाव से पहले भाजपा सरकार ने पसमांदा मुसलमानों को मिलने वाला 4 प्रतिशत आरक्षण लिंगायत और वोक्कालिगा को दे दिया था
7. अब अगर संगठन की बात करें तो जहां एक ओर कांग्रेस ने सिद्धारमैया और डी के शिवकुमार के बीच की रस्साकसी को लगाम लगाई तो वहीं भाजपा में आंतरिक कलह कुछ ज्यादा ही बढ़ गया। 82 साल के येदुरप्पा जहां अपने लोगों के लिए आखिरी लड़ाई लड़ रहे थे तो पार्टी के अंदर ही उन्हें कमजोर करने की साजिश ने पार्टी को चुनाव में बढ़त नही लेने दी। ऐसा कहा जाता है कि येदुरप्पा की राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बी एल संतोष से भी नहीं बनती जिसका खामियाजा टिकट वितरण से लेकर चुनाव प्रचार में भी देखने को मिला।
8. भाजपा चुनाव आते आते आंतरिक कलह के अलावा राज्य सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों में ऐसी उलझ गई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जबरदस्त रैलियां और रोड शो भी नए वोटरों को जोड़ने में सफल नहीं हो सके।
9. दो महीने पहले भाजपा के एक राष्ट्रीय नेता ने मुझे कहा कि कर्नाटक में सिर्फ 60 सीटें आएंगी ऐसा सर्वे बता रहे हैं, मोदी के कैंपेन से सीटों में बढ़ोतरी का प्लान है, पर यह तब तक नहीं हो पाएगा जब तक राज्य की लीडरशिप में कुछ नया न हो !
10. कर्नाटक विधानसभा चुनावों के रिजल्ट के बाद भाजपा को आत्ममंथन करने की ज़रूरत है वह भी राज्यवार लीडरशिप पर, क्योंकि इसी साल तीन और राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं और वहां भी स्थितियाँ कुछ अच्छी नहीं है !
तड़ित प्रकाश की कलम से।
तड़ित प्रकाश चुनाव विश्लेषक, VMR
राजनीतिक शोधकर्ता के रूप में भारत के 21 राज्यों की यात्रा कर चुके हैं
यानि स्पष्ट है कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व भी कर्नाटक के हालात से वाकिफ था मगर भाजपा संगठन के बी एल संतोष जो कि कर्नाटक से हैं और वहीं कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी कर्नाटक से हैं इन दोनों में मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपनी पार्टी के हित को देखा जबकि बी एल संतोष ऐसा नहीं कर पाए।
वहीं फ़िल्म ‘केरला स्टोरी’ ने मुस्लिम वोटर को पूरी तरह से एकजुट कर दिया लेकिन हिंदू वोटर बंट गए ये भी महत्वपूर्ण तो नहीं मगर कुछ सीटों पर प्रभाव डालने वाला मुद्दा बन गया।