राम आएंगे इसकी धूम आज देश ही नहीं वरन विदेशों में भी है!अयोध्या में जाने वालों की लाइन ऐसी कि अब वहां पाँव रखने की जगह नहीं बची है लेकिन इसी बीच एक ऐसा दस्तावेज छत्तीसगढ़ से सामने आया है जो रामभक्तों के साथ साथ हमारी समृद्ध धरोहर के विनाश का प्रमाण है!

दरअसल पूर्व की सरकार ने और उसकी पूर्व सरकार ने भी देश में राम वन गमन के चिन्हँकन के समय छत्तीसगढ़ में भी राम वन गमन चिन्हित किया जिसमें सरगुजा संभाग से लेकर बस्तर तक वनवास के समय भगवान श्री राम के रहने और यहाँ से गुजरने वाले मार्ग को चिन्हित कर उसे विकसित करने का काम भी हुआ!लम्बी रकम भी खर्च कर भूपेश सरकार ने भगवान राम के नाम को भुनाने की कोशिश भी की लेकिन सरगुजा के उदयपुर में रामगढ़ से लगे हसदेव अरण्य के जंगलों की अडानी के कोयले के लिए हो रही कटाई ने रामभक्तों को सोच में डाल दिया कि ये कैसा विरोधाभास कि एक ओर तो जन जन के आराध्य भगवान श्री राम का भव्य मंदिर अयोध्या में बन रहा है वहीं दूसरी ओर उनके वनवास के समय रहने और गुजरने वाले अद्भुत ऊर्जा से भरपूर वनों का विनाश एक कोयले के बड़े कारोबारी को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से किया जा रहा है!

रामगढ़ को भी प्रभु श्री राम के रुकने की जगह दोनों सरकार ने मानी मगर सत्ता बदलते ही विवादित आई एफ एस श्री निवास राव ने मात्र तीन दिन में पेड़ों की कटाई की प्रक्रिया करवा दी जबकि विष्णु देव साय ने शपथ भी नहीं ली थी!इसमें सरगुजा के डी एफ ओ की भूमिका भी संदिग्ध है!

देखिये एक आदिवासी मुख्यमंत्री के नाम की सुगबुगाहट तय होते ही भाजपा के एक पुराने दिग्गज नेता ने कांग्रेस के एक नेता के खास रह चुके और भ्र्ष्टाचार की गाथा लिखे वन विभाग के मुख्य अधिकारी श्री निवास राव के साथ मिलकर एक खतरनाक षड्यंत्र के तहत केंद्र से पत्र आते ही 8 दिसम्बर को ही सरगुजा भेज आनन फानन में 11 दिसम्बर तक प्रक्रिया पूरी कर ली और विष्णु देव साय के शपथ से पहले ही पेड़ों की कटाई शुरू करवा दी जिससे आम लोगों में ये संदेश जाये कि एक आदिवासी मुख्यमंत्री वन सम्पदा के रक्षार्थ कुछ भी करने में असहाय हैं!

इतने संवेदनशील मामले पर इतनी जल्दबाजी कर कहीं विष्णु देव साय की छवि पहले से धूमिल करने की साजिश कर गंदी राजनीति का खेल वन विभाग के श्रीनिवास राव ने किसके कहने पर किया?

इसमें महत्वपूर्ण तथ्य ये है कि 9 और 10 दिसम्बर को शनिवार व रविवार की छुट्टी थी ऐसे में इस आदेश को 11 दिसम्बर तक मूर्त रूप भी दे दिया गया जबकि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय को 10 दिसम्बर को राज्य का मुख्यमंत्री घोषित किया गया और 13 को शपथ हुई मगर मोहम्मद अकबर और भाजपा के एक दिग्गज नेता ने अडानी की कोयला खदान के लिए आनन फानन में मात्र 8 दिसम्बर से 10 दिसम्बर तक पूरा खेल कर दिया! इस षड्यंत्र में इन दो लोगों का साथ दिया अपनी तानाशाही के लिए कुख्यात आई एफ एस श्री निवास राव ने जिसकी परिणति ये हुई कि सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी!

आश्चर्य और दुर्भाग्य तो ये कि सरगुजा संभाग के तथाकथित जननेताओं को इसकी भनक तक नहीं लगी कि किस कदर अडानी के लिए एक सुनियोजित तंत्र यहाँ बड़ी सफाई से राम वन गमन के ऊर्जावान वन की ही सफाई करने में सफल होना शुरू हो गया!यहाँ दोनों दलों के नेता इस वन के विनाश के लिए पूरी तरह दोषी हैँ!

केंद्र सरकार भले ही कोई पत्र भेजे मगर जब सत्ता बदल चुकी है तो राज्य सरकार को भी जन जन के आराध्य भगवान श्री राम से जुडी धरोहर को सहेज कर उसे संवारने की ज़रूरत है न कि उसे नष्ट कर प्रकृति के कोप भाजन बनने की! विष्णु देव साय को सोचने और समझने का मौका ही नहीं मिला और तो और श्री निवास राव कोल कंपनी की नज़र में अपनी हैसियत सितारा छवि जैसी गढ़ने के लिए कांग्रेस शासन काल में अपने किये भ्र्ष्टाचार को छिपाने में भी लग गया!

शायद अडानी जैसे धनकुबेर को प्रकृति का कोप अभी भले नज़र नहीं आ रहा है मगर जब प्रकृति अपने पर उतारू हो विनाश लीला दिखाना प्रारम्भ करती है तो बड़े से बड़े राष्ट्र और बड़ी हस्तियां पल भर में ज़मींदोज़ हो जाते हैं काश आज राजनेता अयोध्या में भगवान राम की जीवंत मूर्त के सामने उनकी धरोहर और प्रकृति के संरक्षण की भी शपथ ले पाते तभी रामलला का मंदिर में विराजमान होना सार्थक हो पायेगा!

By admin

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