हसदेव अरण्य। ये नाम आज छत्तीसगढ के तमाम लोगों की ज़ुबान पर है।यहां की खूबसूरत प्रकृति,हंसते मुस्कुराते जंगल अपनी गोद में कई जानवरों को पालते आए हैं,ग्रामीणों के लिए भी हर तरह से कई औषधि व कीमती चीज़ें देकर उनका जीवन यापन भी करते आ रहे हैं।
परंतु इनके गर्भ में छिपा कोयले का अकूत भंडार ही आज इनके विनाश का कारण बना दिया जा रहा है।
इसी हसदेव अरण्य से एक नारा भी निकला जल जंगल जमीन। इस नारे की बदौलत ही छत्तीसगढ में कांग्रेस की सरकार ने यहां व आसपास के ग्रामीणों से इसे बचाने का वादा किया लेकिन सत्ता में आते ही कांग्रेस का चरित्र इसके लिए अब पूरी तरह से बदल चुका है।
खाली कांग्रेस को दोष देना भी गलत है क्योंकि ये सब कवायदें तो पूर्व की भाजपा सरकार के समय से हो रही थीं। उस स्थिति का कांग्रेस ने जमकर दोहन किया।जून 2015 में राहुल गांधी ने मोरगा आकर आसपास के सभी ग्रामीणों से वादा किया कि हम आपके जल जंगल जमीन पर कोई आंच नहीं आने देंगे।निश्छल आदिवासी व अन्य लोग इन्हें भी पेड़ पौधों की तरह जगह जगह पूजते दिखे।उस सभा में भूपेश बघेल,टी एस सिंहदेव,मोहसिना किदवई,पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी समेत तमाम बड़े नेताओं ने इन ग्रामीणों से हर तरह के वादे पूरी दमदारी से कर भाजपा को जमकर कोसा।
लेकिन सत्ता में आते ही कांग्रेस के बोल और चाल दोनों ही अचानक बदल गए।
कांग्रेस सरकार की वादाखिलाफ़ी के बाद हसदेव बचाओ आंदोलन शुरू हुआ।
विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर अपने जल -जंगल -जमीन -पर्यावरण और जीवन की रक्षा के लिए हसदेव को बचाने का लिया संकल्प !
अडानी के उत्पादों का किया जायेगा बहिष्कार
दिनांक 5 जून 2022 को विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर हसदेव अरण्य के परसा कोल ब्लॉक प्रभावित ग्राम हरिहरपुर में आन्दोलन स्थल पर संकल्प सम्मलेन का आयोजन किया गया जिसमे हसदेव के स्थानीय ग्रामीणों सहित पूरे प्रदेश से हजारों की संख्या में लोग शामिल हुए l
राजनांदगांव और बिलासपुर के सैकड़ों युवा “हसदेव बचाओ” मोटरसाइकिल रैली के रूप में हसदेव अरण्य के सम्मेलन में शामिल हुए l रास्ते में जगह जगह रैली का स्वागत और हसदेव अरण्य को बचाने का संकल्प लिया गया l
आयोजित संकल्प सम्मलेन में पूरे प्रदेश से पहुचे विभिन्न सामाजिक संगठनो, पर्यावरणीय कार्यकर्ताओं ने हसदेव को बचाने चल रहे आन्दोलन को समर्थन देते हुए कहा कि हमारे लिए जीवन प्रदान करने वाले इन जंगलो को आज कार्पोरेट मुनाफे और तथाकथित विकास के नाम पर ख़त्म किया जा रहा है l प्रकृति के साथ जीवन जीने वाले आदिवासियों जिनकी पूरी आजीविका और संस्कृति ही जंगल है उन्हें इसे बचाने के लिए आन्दोलन करना पढ़ रहा है, जबकि जंगल -जमीन और आदिवासियों के संरक्षण का दायित्व राज्य व केंद्र सरकारों का है l दुखद रूप से ये सरकारें अपनी संवैधानिक भूमिका का निर्वहन करने की बजाए कार्पोरेट के एजेंट की भूमिका निभा रही हैं l
सम्मलेन को संबोधित करते हुए एनजीओ के आलोक शुक्ला ने कहा कि हसदेव अरण्य की समृद्धता को स्वीकार्य करते हुए स्वयं केंद्र व राज्य सरकारों ने इसे खनन से मुक्त रखने के निर्णय लिए थे l वर्ष 2010 में सम्पूर्ण हसदेव अरण्य क्षेत्र को खनन से मुक्त रखते हुए NO GO क्षेत्र घोषित किया था l भूपेश सरकार ने मानव हाथी संघर्ष को नियंत्रित करने, हसदेव के सम्पूर्ण कैचमेंट को सुरक्षित करते हुए परसा, तारा और केते एक्सटेंशन कोल ब्लाक को लेमरू में शामिल कर 3827 वर्ग किलोमीटर करते हुए प्रभावित ग्राम सभाओं से प्रस्ताव मंगाये गए l लेकिन आज उस निर्णय से पीछे हटते हुए सिर्फ अडानी कम्पनी के दवाब में उन्ही गाँव को उजाड़ने का कार्य किया जा रहा है l
जिला किसान संघ के सुदेश टीकम ने कहा कि पिछले एक दशक से हसदेव के आदिवासी और अन्य वन पर निर्भर समुदाय अपने जल, जंगल, जमीन, आजीविका, संस्कृति और पर्यावरण को बचाने के लिए आन्दोलनरत हैं l अपने जनवादी, लोकतांत्रिक जमीनी संघर्षो और जनपक्षीय कानूनों का इस्तेमाल करते हुए हसदेव के ग्रामीणों ने जंगलो के विनाश को रोका है l लेकिन आज मोदी और भूपेश सरकार मिलकर हसदेव के आदिवासियों का दमन करके उन्हे विस्थापित करना चाहते हैं l इसके खिलाफ आज पूरा छत्तीसगढ़ उद्देलित है l
बिलासपुर से आए प्रदीप चंद्र, प्रथमेश मिश्रा, प्रकाश सोनथलिया ने श्रेयांश बुढ़िया ने अपनी बात रखते हुए कहा कि हसदेव के जंगलों को बचाने की लड़ाई अब बिलासपुर की भी लड़ाई है। क्योंकि इनके विनाश से बिलासपुर शहर सूखे में तब्दील हो जाएगा। प्रथमेश मिश्रा ने मुख्यमंत्री के बयान का जवाब देते हुए कहा कि सरकार हसदेव की खदान को निरस्त करने की घोषणा करें हम अपनी बिजली स्वयं काट लेंगे।
घाटबर्रा सरपंच विजय कोर्राम और साल्ही सरपंच विजय कोर्राम ने कहा कि हमारे गांव के फर्जी ग्रामसभा प्रस्ताव बनाकर अदानी कंपनी ने वन स्वीकृति हासिल की है। आज तक प्रशासन ने फर्जी प्रस्ताव की निष्पक्ष जांच तक नही की है।
सम्मेलन उपरांत उपस्थित हजारों लोगों ने हसदेव अरण्य के जल, जंगल, जमीन पर्यावरण को बचाने, पूरी मानवता को बचाने एकजुट संघर्ष का संकल्प लिया गया।
इसके साथ ही हसदेव का विनाश करने वाले अदानी समूह के उत्पादों का बहिष्कार करने का संकल्प लिया गया ।
धरना को बिजली जनता यूनियन के महासचिव सी के खांडे,प्रसिद्ध रंगोली कलाकार प्रमोद साहू, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के रमाकांत बंजारे, पंडो समाज के अध्यक्ष डॉ उदय पंडो, किसान मजदूर महासंघ के श्याम मूरत कौशिक, जागरूक जन छत्तीसगढ़ के अनिल वर्मा , गांधीवादी विचारक प्रथमेश मिश्रा, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव संजय पराते, छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना के सुरेंद्र राठौर, रायपुर के ओमेश बिसेन सहित
श्रीमती गीता जिला पंचायत सदस्य, बलरामपुर , श्रीमती रायमुनिया करियाम जनपद सदस्य गुमगा उदयपुर, बजरंग पैकरा जनपद सदस्य मदनपुर, सहित जयनंदन पोर्ते, सरपंच घाटबर्रा, विजय कोर्राम, सरपंच साल्ही, नवल सिंह बरकड़े सरपंच सोंतराई , श्रीपाल पोर्ते सरपंच बासेंन्,श्रीमती अमृता कोर्राम सरपंच मुड़गांव देवसाय मरपच्ची सरपंच मदनपुर जिला कोरबा, धजाक सरपंच धनसाय, केंदई सरपंच रमेश, खिरती सरपंच जयसिंह, गिदमुडी सरपंच गंगोत्री उइके।
आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।
अब एक नज़र छत्तीसगढ में विपक्ष में बैठी भाजपा की प्रतिक्रिया पर।
चूंकि भाजपा के शासनकाल में ही यहां कोल ब्लॉक आबंटन की प्रक्रिया में गोलमोल तरीके से तेजी लाने के बाद कार्य शुरू हुआ।इस कारण भाजपा इसमें पूरी तरह से मुखर होकर आगे आने का नैतिक साहस नहीं जुटा सकी।वो तो हज़ारों ग्रामीणों और देश भर के कई संगठनों की कड़ी आपत्ति के बाद मजबूरी वश इनके नेताओं को ग्रामीणों का साथ देने का एक ढोंग करना पड्रा।
केंद्र में बैठी पूर्ण बहुमत की भाजपा की मोदी सरकार ने भी इस पर मौन साधा जो दुर्भाग्य पूर्ण है। एक ओर तो मोदी सरकार पर्यावरण संरक्षण व संवर्धन की बात कर युद्ध स्तर पर जंगलों को बचाने का दावा कर रही है मगर जब यथार्थ में इसे करने के लिए छत्तीसगढ के सरगुजा संभाग के हज़ारों लोग भावुक होकर इन जंगलों को कटने से बचाने के लिए हर मौसम में दिन रात एक किए हुए हैं उस स्थिति में केंद्र सरकार की स्पष्ट नीति व दिशानिर्देश के पालन के लिए सख्त होने की भूमिका का न होना कई सवालों को खड़ा कर रही है।
गौरतलब है कि हसदेव अरण्य में लाखों पेड़ काटे जायेंगे,इससे होने वाले जलवायु परिवर्तन व दुष्प्रभाव की कल्पना करने से ही सिहरन होने लगती है।
कल भारत में चीते लाकर मध्यप्रदेश के क्रूनो पार्क में छोड़े गए। इस पार्क में कई तरह की कृत्रिम व्यवस्था भी करनी पड़ रही है जबकि हसदेव अरण्य के जंगल पूरी तरह से कई तरह की विविधता लिए पूरी तरह से प्राकृतिक हैं।
नामीबिया से चीतों को लाने के पहले ही, चीतो की भूख मिटाने राजगढ़ से भेजे 181 चीतल ।
कूनो नेशनल पार्क में चीतो की बेहतर देखभाल के लिए राजगढ़ का चिडिखो अभ्यारण बना मददगार।
प्रदेश के श्योपुर स्थित कूनो नेशनल पार्क में कल नामीबिया से लाए चीते छोड़े गए ।बेहतर वातावरण देने के साथ ही उनकी देखरेख और भूख का खास ख्याल रखने की तैयारी चल रही है।लुप्त होती प्रजाति को तेजी बढ़ावा मिल सके । इसके लिए राजगढ़ जिले का चिड़ीखो अभ्यारण वरदान बन कर आया है । इस अभयारण्य में चीतल और हिरण की संख्या बहुत है ।यही कारण है कि अफ्रीका से आने वाले चितो की भूख मिटाने के लिए राजगढ़ जिले के नरसिंहगढ़ चिड़ीखो वन अभ्यारण से 181 चीतल भेजे गए है। यहा से 200 चीतल की डिमांड की गई थी ।
अब सबसे महत्वपूर्ण तथ्य के लिए चीतों पर विशेष अध्ययन के लिए कबीर संजय की जानकारी का उल्लेख भी बेहद उपयोगी है
“शेर हमेशा चीतों की जान ले लेता है.
भारत में नामीबिया के चीतों को बसाए जाने से कुछ लोग उत्साह में है।
जाहिर है कि जानवरों के बारे में हमारी समझ बहुत ही भोथरी है।
और हम उस समझ को बदलना भी नहीं चाहते।
न ही इस बारे में कुछ पढ़ना-समझना चाहते हैं।
यही कारण है कि कुछ पत्रकार इस तरह की खबरें चला रहे हैं कि भारत में शेर अब चीता लेकर आया है।
लेकिन, उन्हें शायद पता नहीं कि जंगल में शेर जब भी मौका मिले चीते को मार देते हैं।
मांसाहारी जीव एक दूसरे को पसंद नहीं करते हैं। जब भी मौका मिलेगा एक बाघ किसी तेंदुए को मार देगा। जब भी मौका मिलेगा एक शेर चीते को मार डालेगा। जब भी मौका लगेगा बाघ और शेर में एक दूसरे को मारने की लड़ाई छिड़ जाएगी।
वे एक दूसरे को पसंद नहीं करते हैं। यहां तक कि स्पाटेड हायना भी शेरों के बच्चों को मारने की फिराक में लगे होते हैं।
शेर भी जहां मौका लगे हायना (लकड़बग्घा) को मार डालते हैं। हाथी को भी अगर मौका मिल जाए तो वो शेरों को बच्चों को मार डालते हैं।
इसके पीछे कुल मिलाकर मतलब पारिस्थितिक संतुलन बनाने से है।
मांसाहारी जानवर एक-दूसरे की जान के पीछे पड़े रहते हैं। किसी चीते या लकड़बग्घे को मारने के बाद शेर उसे खाता नहीं है। क्योंकि, चीता या लकड़बग्घा उसके लिए खाना नहीं है। उसके लिए वह प्रतिद्वंद्वी है। दुश्मन है। आज अगर उसे नहीं मारा गया तो कल वह उसके शिकारों पर हमला करेगा। उसके साथ भोजन साझा करना पड़ेगा।
इसीलिए वह जब भी मौका लगे वह उसे मार डालता है।
इसलिए कृपया शेर लाया चीता जैसे मुहावरे का इस्तेमाल नहीं करें। इससे सिर्फ यही पता चलता है कि आप वन्यजीवों के मामले में कितने बड़े अनपढ़ हैं।
फिर गूंजी चीते की दहाड़ भी गलत है। क्योंकि, चीते दहाड़ते नहीं है।
इसकी बजाय यह कहा जा सकता है कि भारत में फिर से फर्राटा भरेंगे चीते। क्योंकि, रफ्तार के ही वे प्रतीक हैं। रफ्तार ही उनका सबकुछ है। उनकी दहाड़ में जान नहीं है। उनकी रफ्तार में जान है।
इसलिए जैसे ही आप कहते हैं कि फिर गूंजेगी चीते की दहाड़, आप अपने आप को फिर से अनपढ़, जाहिल और अहमक सिद्ध करते हैं।
चित्र इंटरनेट से लिया गया है। इसमें एक शेरनी चीते की हत्या कर रही है। अफ्रीका के जंगलों में हत्या के ऐसे मामले अक्सर ही सामने आते रहते हैं।”
कबीर संजय ने ‘चीता’ नामक किताब में इन चीतों के लिए कई बातें तथ्यपरक रूप से लिखी हैं।
बहरहाल आज अदानी विश्व के बड़े रईसो में शामिल हो चुके हैं। निःसंदेह ये भारतीयों के लिए गर्व का विषय है।परंतु अब अदानी कंपनी के मुखिया को अपने कीर्तिमान स्थापित करने से पहले अपने उस देश की सनातन संस्कृति व उसके पर्यावरण के हित का भी मुख्य रूप से ध्यान रखना श्रेयस्कर होगा।एक छोटी सी हठ पूरे देश के पर्यावरण संतुलन को बिगाड़ने के लिए जंगल में उठी उस चिंगारी की भांति होगी जो पूरे जंगल को जलाकर राख करने का कारक भी बनती है।
हसदेव अरण्य क्षेत्र में आज भी हिरण,चीतल,भालू,बंदर बहुतायत में हैं साथ ही समृद्ध जैव विविधता भी।
बस एक ईमानदारी और नैतिक साहस के साथ इन कर्ता धर्ताओं को अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनने की आवश्यकता है।यदि समय पर इन सब ने ये आवाज़ सुन ली तो ठीक अन्यथा प्रकृति अपने रास्ते स्वयं बनाती है और जब वो रौद्र रूप में आकर रास्ता बनाने पर तुली तो न सत्ता की चलेगी न धनकुबेरों की।
अज्ञात का कथन है “प्रकृति कभी आलोचना की परवाह नहीं करती।”
आलोक शुक्ल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पत्रकार व स्वतंत्र स्तंभकार