छत्तीसगढ़ में भाजपा को सत्ता में आए दो महीने हो गए, विधानसभा का लंबा सत्र भी शुरू है जिसमें विधायक प्रश्न कर साबित कर रहे हैं कि वो जनता जनार्दन के प्रबल हितैषी हैं।
लेकिन सच तो ये है कि बेशर्म होती राजनीति अब दोनों बड़े दल कांग्रेस और भाजपा के नेताओं की नैतिकता पर गंभीर सवाल उठा रही है।
राहुल गांधी छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार में जून 2017 को सरगुजा संभाग के हसद्ेव अरण्य के ऊर्जावान जंगलों के विनाश की शुरू होती प्रक्रिया में हज़ारों ग्रामीणों के सामने एक मसीहा बनते दिखे लेकिन इनकी कांग्रेस की सरकार आते ही कांग्रेस को इन गाँव वालों और आदिवासियों की जल जंगल ज़मीन की सनातनी संस्कृति से जुड़े संवेदनशील मामले में पलटते देर नहीं लगी और भूपेश सरकार में ही यहाँ केंद्र सरकार की अनुमति का हवाला देकर राम वन गमन पथ के वनों का क्रूर विनाश प्रारंभ किया गया।
संयोग देखिए राहुल गांधी आज सरगुजा आ रहे हैं और इस मुद्दे को कांग्रेस भरपूर बेशर्मी के साथ तूल दे रही है लेकिन लगता है ये सब राजनेता ‘प्रकृति के न्याय’ को भूल चुके हैं किंतु प्रकृति वहीं है और वो जब न्याय करती है तो सत्ता और सूरमा चारों खाने चित्त हो जाते हैं। राज्य से कांग्रेस की विदाई हो चुकी है और राहुल गांधी अब किस मुँह से न्याय की बात करेंगे और जनता इसका क्या जवाब देगी वो भी समय बताएगा।
अब आते हैं सनातन संस्कृति का पोषक बनकर दंभ भरने वाली सबसे बड़ी पार्टी भाजपा की।घनघोर आश्चर्य ये कि एक ओर जन जन के आराध्य भगवान श्री राम के भव्य मंदिर का 22 जनवरी को अयोध्या में उद्घाटन हुआ लेकिन जिस वन में प्रभु श्री राम ने वनवास के दौरान कुछ पल बिताए उसी राम वन गमन पथ के विनाश पर दोनों दल इसलिए मुखर नहीं हैं क्योंकि एक धनकुबेर को यहाँ कोल ब्लॉक आवंटित किया गया है और वो बिजली के लिए यहाँ के अनगिनत सालों से लगे ऊर्जावान जंगलों को नष्ट करने पर ये सोच कर तुला है कि बड़ी पार्टियों का कई चेहरा उसके विकास के नाम पर विनाश लीला के आगे कुछ भी खुलकर नहीं बोलेगा और उसका काम आसानी से होता जाएगा।
कांग्रेस और भाजपा दोनों ही इस क्षेत्र को रामवन गमन पथ बताते रहे हैं ऐसे में यहाँ के वनों के विनाश से आराध्य श्री राम के अजर अमर अनन्य भक्त हनुमान जी की गदा इन निरंकुश सोच के नेताओं समेत ज़िम्मेदारों पर निश्चित ही चलनी चाहिए जिससे इन्हें अपने कद का सही आंकलन हो।
अब बात एक और गंभीर मुद्दे की वो है अंबिकापुर के महामाया पहाड़ के होते विनाश का तो यहाँ भी कांग्रेस सरकार के समय पहाड़ के विनाश की दुहाई देने वाले और हो हल्ला कर अपनी राजनीति को चमकाने की भरपूर कोशिश करने वाले अब इस मामले पर मौन क्यों हैं ये समझ से परे है।सरकार बने दो महीने हो गए तो अब भी मां महामाया के मुकुट यानि महामाया पहाड़ से बेजा क़ब्ज़ा हटाने और यहाँ नियम विरूद्ध बने एक स्कूल कार्यवाही करने में प्रशासन के हाथ पैर क्यों फूल रहे हैं? और जब खाली काग़ज़ और पत्र का खेल खेलना था तो इस मुद्दे को पिछली कांग्रेस सरकार के समय ही उछाल उछाल कर क्या साबित करने की कोशिश की गई ये भी आमजन के मन में गंभीर प्रश्न बनकर समाया हुआ है।
‘पहल’ ने इस मामले में यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य से भी प्रश्न किया था जब वो मंदिर में माँ महामाया का दर्शन करने आए थे उनकी बात भी रिकॉर्ड के तौर पर मौजूद है साथ ही अंबिकापुर के विधायक राजेश अग्रवाल के द्वारा इस मामले पर कोई पहल नहीं करने की बात लोगों को अब चुभने लगी है।
बहरहाल प्रकृति सब के चरित्र को समय पर सबके सामने ला पटकती है काश आज की बेशर्म राजनीति इससे कुछ सीख थोड़ी शर्म तो बचा पाए।