कल से हसदेव अरण्य के जंगलों का विनाश फिर से शुरू हुआ।
ग्रामीणों के दमदार विरोध के बाद भी अडानी को दिए गए कोल ब्लॉक के लिए राम वन गमन का विनाश प्रशासन और पुलिस की मौजूदगी में शुरू हुआ।
सर्वविदित है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम इन्हीं हसदेव अरण्य या कहें भगवान के वन गमन का क्षेत्र माने जाने वाले इन समृद्ध और ऊर्जावान जंगलों का विनाश सीधे तौर पर जन जन के आराध्य का अपमान है।
इस क्षेत्र को राम वन गमन हम नहीं बल्कि भगवान राम के नाम पर अयोध्या में भव्य मंदिर बनाने का दंभ भरने वाली भाजपा पार्टी कहती है ,, और तो और कांग्रेस भी इसे राम वन गमन पथ मानती है उसके बाद भी यहाँ के वनवासियों के प्रबल विरोध के बाद अडानी के कोल ब्लॉक के लिए पेड़ कटाई जारी है।कल पुलिस के साथ हुई हिंसक झड़प में कई चोटिल भी हुए हैं लेकिन धनकुबेर के आगे किसी की आवाज़ नहीं निकल रही है।
कांग्रेस के पूर्व डिप्टी सीएम टी एस सिंहदेव ने कहा था कि एक भी डाल कटी तो पहली गोली मैं खाऊँगा और वो इस तरह गायब हैं जैसे गदहे के सिर से सींग।
आश्चर्य तो ये कि सनातन की और भगवान श्री राम की दुहाई देने वाली भाजपा और इसके लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी राम वन गमन पथ के वनों के विनाश पर मौन साधे हुए हैं।

इसमें छत्तीसगढ के पीसीसीएफ की भूमिका की भी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।क्योंकि जिस तरह से कोल ब्लॉक के नाम पर वनों की कटाई जिस जल्दबाजी में हो रही है उससे वन विभाग के पीसीसीएफ की भूमिका भी संदेह के दायरे में है जिसे लेकर कईयों ने संदेह व्यक्त किया है।वन विभाग पर एक गंभीर सवाल ये उठ रहा है कि जब कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दल सरगुजा में राम वन गमन पथ को मानकर इस क्षेत्र में और राष्ट्रीय स्तर पर इसका प्रचार प्रसार किए हैं तो वन विभाग की एक बहुत महत्वपूर्ण जिम्मेदारी बनती थी कि राम वन गमन पथ के ऊर्जावान ,प्राकृतिक और पौराणिक जंगलों को जन जन के आराध्य भगवान श्रीराम के द्वारा विचरण किए इन वनों को वो राष्ट्रीय ही नहीं अपितु अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संरक्षित करने का पावन प्रयास कर नहीं पाई बल्कि अडानी के लिए आबंटित कोल ब्लॉक के नाम पर इन्हें कटवाने में बहुत जल्दबाजी कर सरकार की किरकिरी करवाने में सहायक हो गई।

पुख्ता सूत्रों की मानें तो अडानी की आड़ में वन विभाग के कुछ लोग वन कटाई में भी बड़े भ्रष्टाचार में लिप्त हैं।
प्रकृति  जब विनाश का तांडव करती है तो इसके न्याय के आगे देवी देवता हों या पीर फ़क़ीर कोई कुछ नहीं करता बल्कि मौन होकर प्रकृति के न्याय को सराहते हुए यही कहता है जैसी करनी वैसी भरनी।
काश इन वनों की संस्कृति, सनातन धर्म का तनिक भी ज्ञान अडानी को होता तो वो ये भयंकर भूल सपने में भी नहीं करता मगर कहावत है विनाश काले विपरीत बुद्धि। बस ये कहावत अब इस मुद्दे पर राजनीति करने वालों और अडानी पर कब चरितार्थ होती है यही देखना बाकी है।

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