आलोक शुक्ल,संपादक पहल।
खूबसूरत वादियों में बसा छत्तीसगढ़ का हिल स्टेशन मैनपाट सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
मैनपाट को छत्तीसगढ़ का शिमला भी कहा जाता है।
लेकिन पर्यटन के मानचित्र पर इसका नाम स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हो पाता उससे पहले ही छत्तीसगढ़ के सरगुजा ज़िले का प्राकृतिक सुंदरता से भरा ये क्षेत्र प्रशासन की निष्क्रियता से भू माफियाओं के लिए चारागाह बन चुका है।


लगातार यहाँ की वन भूमि पर खुलेआम क़ब्ज़ा किया जा रहा है और राजस्व अमले की मिलीभगत से कई बाहरी संदिग्ध लोग यहाँ क़ाबिज़ होते जा रहे हैं।
आश्चर्य तो ये कि भाजपा एक ओर तो झारखंड में अवैध घुसपैठ के साथ साथ वहाँ की बदलती डेमोग्राफी को मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ी वहीं झारखंड से लगे छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार रहते हुए भी यहाँ ज़मीन पर अवैध क़ब्ज़े और फर्जीवाड़े पर कोई कार्रवाई नहीं कर अपना दोहरा चरित्र प्रदर्शित कर रही है।नीचे दिए लिंक पर आप पूरे खुलासे को देख सकते हैं।

‘पहल’ इस खुलासे पर केंद्रीय जांच एजेंसी ईडी और एनआईए से भी इस पूरे संगीन मामले की जांच की मांग पूरी जिम्मेदारी के साथ करता है क्योंकि लचर प्रशासन ही इसके लिए जिम्मेदार है।

‘पहल’ ने कुछ प्रमाण के साथ मैनपाट में सरकारी ज़मीन पर तेजी से अवैध कब्जे को लेकर एक ख़बर अपने यू ट्यूब चैनल पर दिखाई थी जिस पर छत्तीसगढ के जाने माने आरटीआई एक्टिविस्ट राकेश चौबे ने सरगुजा के संभागायुक्त को पत्र लिखकर कार्रवाई कर कुछ बड़ी जानकारी मांगी है साथ ही ‘पहल’ से बातचीत कर कहा है कि यदि सरगुजा का ज़िला प्रशासन इस मामले पर पारदर्शिता के साथ काम नहीं करता है तो इस मामले पर वो उच्च न्यायालय में याचिका भी दायर करेंगे क्योंकि यहां सरकारी ज़मीन पर अवैध कब्जे का आंकड़ा बेहद चौंकाने वाला है और प्रशासन कुछ कार्रवाई कर मीडिया में अपनी वाहवाही कर अपनी पीठ स्वयं थपथपाते ही दिखता है।

राकेश चौबे ने हमारे समाचार और हमसे ली जानकारी के बाद महत्वपूर्ण बिंदुओं पर शिकायत की है जिसे हम प्रकाशित कर आमजन के बीच ला रहे हैं।

इस पत्र में छत्तीसगढ बनने पर मैनपाट की सरकारी ज़मीन का रकबा और वर्तमान में सरकारी ज़मीन का रकबा जिसमें वन परिक्षेत्र भी हैं इनका पूरा रिकॉर्ड मांगा है साथ ही सरकारी अधिकारियों और किन किन नेताओं की यहां कितनी ज़मीन है इसका भी रिकॉर्ड मांगा है।गौरतलब है कि सीबीआई जांच में फंसे टामन सिंह सोनवानी की मैनपाट में ज़मीन और रिसॉर्ट का खुलासा भी ‘पहल’ ने किया था।


पहल ने मैनपाट के स्थानीय निवासियों की माँग पर जब पड़ताल की तो बेहद चौंकाने वाला खुलासा हुआ जिससे सरगुजा के प्रशासन की संदिग्ध भूमिका पर बहुत ही गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।


यहाँ भी एक व्यक्ति के दो नाम वाली बात सामने आ रही है जिसकी जाँच केंद्रीय एजेंसी को कर यहाँ चल रहे षड्यंत्र का भंडाफोड़ करने की सख़्त आवश्यकता है।
अंबिकापुर के माँ महामाया विमान तल से मात्र 25 किलोमीटर दूर मैनपाट में अंतराष्ट्रीय स्तर का पर्यटन विकसित हो सकता है लेकिन निष्क्रिय प्रशासन के कारण ये संभव नहीं है।
यहाँ की सुरम्य वादियों में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम भी बन सकता है क्योंकि यहाँ समतल भूमि की बड़ी उपलबधता और सुहाना मौसम इसके लिए वरदान साबित हो सकता है साथ ही बड़े होटल और रेस्टोरेंट भी सरकारी नियंत्रण में खुल सकते हैं जिसके लिए यहाँ दूरदर्शी सोच के ईमानदार और कर्तव्य परायण अधिकारी के साथ साथ राज्य सरकार के दृढ़ संकल्प के समन्वय की आवश्यकता है जिससे ये जगह उजड़ने से पहले कुछ इस तरह बसे कि वो पूरे देश के लिए मिसाल बन सके।
छत्तीसगढ़ के मैनपाट में पर्यटन की असीम संभावनाएँ हैं।उल्टा पानी,दलदली भूमि और कई मनमोहक जलप्रपात से भरी इस सुंदर जगह को यदि संवारा गया होता तो आज ये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हो सकता था मगर भू माफ़िया इसे जल्दी ही उजाड़ कर इसके सौंदर्य को पूरी तरह नष्ट कर इसे जल्दी ही मरुस्थल में तब्दील कर देंगे ये कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी।
लचर प्रशासन जिसके ऊपर छत्तीसगढ़ के सबसे ख़ूबसूरत हिल स्टेशन को संवारने की ज़िम्मेदारी थी वो भू माफ़ियाओं के हाथ की कठपुतली बना बैठा है।

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