सरगुजा कलेक्टर का एक आदेश कई विभागों में चर्चा का विषय बना हुआ है।अधिकार क्षेत्र पर भी नियम को लेकर प्रश्न उठ रहे हैं।

एक लेक्चरर को सीधे मैनपाट का मुख्य कार्यपालन अधिकारी यानि सीईओ बना दिया गया है वो भी मुख्यमंत्री के संभाग में सरगुजा ज़िले के कलेक्टर के आदेश से।


ये पद आदिम जाति कल्याण विभाग का है वहाँ से इस पर पदस्थापना की जा सकती थी।हम आपको ये आदेश भी दिखा रहे हैं।

आदिम जाति कल्याण विभाग से भी कोई न हो तो जिला पंचायत से भर्ती करनी थी इसके लिए भी यहाँ दो लोग हैं जो Apo यानि सहायक परियोजना अधिकारी हैं और पीएससी से चयनित हैं और इनके पास अनुभव भी है।हद तो ये कि बड़े अधिकारी के पद पर पीएससी से चयनित और उपलब्ध होने के बाद एक साधारण लेक्चरर को इतने महत्वपूर्ण पद पर कैसे बिठा दिया गया है,ये बहुत ही गंभीर प्रश्न है?
स्कूल शिक्षा विभाग से इस तरह एक जूनियर लेक्चरर को इतने महत्वपूर्ण पद पर बैठाकर ये आदेश निकाल दिया गया है।

हाल ही में लेक्चरर को BEO बनाने के मामले पर भी हाई कोर्ट ने फटकार लगाई थी, सरगुजा संभाग में भी नियम विपरीत B.E.O. बनाने का आदेश जारी किया गया था इसे भी ‘पहल’ ने प्रमुखता के साथ प्रकाशित किया था।और अब सरगुजा के कलेक्टर विलास भोसकर के इस आदेश से विभाग के लोग हैरान हैं और अंदरखाने ही ये बात उठ रही है कि क्या कलेक्टर जैसे पद पर पदासीन अधिकारी के द्वारा ये आदेश चुनाव से पहले ही विपक्ष के लिए एक मुद्दा न बन जाए कि जब मुख्यमंत्री के संभाग के सबसे बड़े ज़िले में ही नियम क़ानून को ताक पर रखकर इस तरह पदस्थापना की जा रही है तो राज्य में सीएम विष्णु देव साय का प्रभाव अपने आप ही कम होता जाएगा।

छत्तीसगढ की भाजपा सरकार और संगठन दोनों को ही इस बात पर कड़ी नज़र रखनी चाहिए कि इस तरह कोई भी अधिकारी का एकतरफा आदेश प्रशासन में योग्य लोगों की उपेक्षा करता है और अयोग्य लोगों को योग्य व्याक्ति के ऊपर बैठाने से सरकार के विरुद्ध रोष भी व्याप्त होता है।

ऐसे में मुख्यमंत्री के कार्यालय से इस तरह के हैरान करने वाले आदेश पर क्या कार्रवाई होगी ये तो समय ही बताएगा मगर इसी तरह के मुद्दे विपक्ष में बैठी कांग्रेस अपना हथियार बनाकर राज्य की भाजपा सरकार पर निश्चित ही हमलावर होती जाएगी इसमें कोई संदेह नहीं है।

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