कमिश्नर का मुख्य काम संभाग में आमजन को राहत और संभाग के ज़िलों में प्रशासनिक कसावट का रहता है।मगर सरगुजा के कमिश्नर जी आर चुरेन्द्र जो कि प्रमोटी आईएएस हैं इनकी दिलचस्पी इस बात पर अधिक है कि किसकी पदस्थापना कहां की जाए।कुछ विवादित आदेशों से ये स्वयं तो विवादित हो ही रहे हैं साथ ही छत्तीसगढ के भाजपा सरकार की भी जमकर किरकिरी हो रही है कि मुख्यमंत्री के ही सरगुजा संभाग में जब इस तरह से ऐसे आदेश निकलेंगे तो बाकी जगहों पर क्या संदेश जाएगा।हम पहले एक आदेश आपको दिखायेंगे फिर आपको हाई कोर्ट का एक ऐसा निर्णय दिखायेंगे जो इन कमिश्नर महोदय ने सरकार के नियमों को ताक पर रखकर करते एक आदेश निकाल दिया था।
छत्तीसगढ में मुख्यमंत्री के सरगुजा संभाग में सरगुजा कमिश्नर आदेश पर आदेश निकाले जा रहे हैं।आलम ये है कि एक सब इंजीनियर जो निलंबित थे इन्हें सेवा में बहाल कर सुबह लुंड्रा का आदेश निकाला और शाम होते होते सरगुजा कमिश्नर जी आर चुरेन्द्र ने फिर अपने ही आदेश को संशोधित कर दूसरा आदेश निकाल डाला।
निलंबन से बहाल करके कल सुबह आदेश लुंड्रा किया
शाम को राजपुर कर दिया।
सबसे गंभीर सवाल राज्य में BEO यानि विकास खंड शिक्षा अधिकारियों की कुछ नियुक्ति का है जिसमें छत्तीसगढ की वर्तमान भाजपा सरकार के स्पष्ट आदेश के बाद भी राज्य में कुछ जगहों पर और सरगुजा संभाग में भी कई ऐसी पोस्टिंग कर दी गई जिसमें सीधे तौर पर सरकार के आदेश की धज्जी तो उडाई ही गई ऊपर से हाई कोर्ट की फटकार का भी इन निरंकुश अधिकारियों पर कोई असर नहीं पड़ा है।
यहां भी सरगुजा कमिश्नर जी आर चुरेन्द्र ने नियमों को ताक पर कैसे रखा उसके लिए दो आदेश पूरे प्रमाण सहित हम आपको दिखा रहे हैं।
स्पष्ट है कि इस तरह की पदस्थापना और विवादित आदेश से सरकार की निष्पक्षता और प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठते हैं।
गौरतलब है कि सरगुजा कमिश्नर जी आर चुरेन्द्र इसी माह सेवानिवृत्त हो रहे हैं ऐसे में इस तरह के आदेश क्यों?