अंबिकापुर,सरगुजा संभाग का सबसे बड़े शहर और ज़िले के मुख्यालय के तौर पर जाना जाता है।
आदिवासी अंचल के सरगुजा में हर वर्ग के लोग रहते हैं।
आज हम एक चौंकाने वाला खुलासा कर रहे हैं जो आमजन के स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है।
यहाँ पिछले कुछ सालों में प्राईवेट अस्पतालों की एकाएक बाढ़ सी आ गई है।

और तो और विगत 5 से 7 वर्ष से शहर में क्लीनिक और बड़े हास्पीटल खोलने वाले कुछ डॉक्टर आयुष्मान योजना के नाम पर इतनी बड़ी धांधली कर चुके हैं कि इससे सरकार को करोड़ों की चपत लग चुकी है।

प्राईवेट अस्पताल इसके लिए बकायदा ऑटो और एंबुलेंस संचालक से एक डील करके रखते हैं और गाँव से आने वाले मरीज़ों को किसी जानवर की तरह हलाल करने से नहीं चूकते।
इससे कुछ अच्छे डॉक्टर बहुत दुखी हैं मगर इनके बड़े रैकेट और सुनियोजित सिंडिकेट के कारण वो मौन रहना ही बेहतर समझते हैं।
आईए हम परत दर परत इसका खुलासा कर कुछ डॉक्टरों के वेष में छिपे साक्षात यमराज के बारे में बताते हैं।
चंद दिनों पहले ही हमने एक भटकते और रोते बिलखते मरीज़ से बात की।सीतापुर का ये आदिवासी व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ सीतापुर से बस से निकला किसी क्लीनिक का पता लेकर मगर ये वहाँ तक पहुँच ही नहीं पाया क्योंकि हाथ में रिपोर्ट और पट्टी देखते ही ऑटो वाले की गिद्ध दृष्टि इस मरीज़ पर पड़ गई।इसने एक अस्पताल का नाम बताया लेकिन ऑटो वाला इसे लेकर पहुँच गया शहर के व्यस्त तिराहे पर एक बड़े अस्पताल में।
यहाँ इसकी साधारण सी चोट के एवज में एक दिन भर्ती कर 9000 रूपये का बिल दिया गया और आयुष्मान योजना के तहत भी कुछ रूपये उससे काट लिया आराम नहीं मिलने पर वहाँ से ये एक बड़े यमरूपी डॉक्टर के पास पहुँच गया जहां कुछ रूपये टेस्ट के नाम पर ऐंठे गए और हाथ के ऑपरेशन की बात कह एक लाख का बजट बताया गया जिसमें आयुष्मान योजना का बड़ा भाग शामिल करने का वादा किया।
ऑपरेशन की बात सुनते ही पति पत्नी दोनों अस्पताल से किसी तरह पिंड छुटाकर भागे और गाँव से एक व्यक्ति को बुलाया तब कहीं जाकर ये शहर के उस अस्पताल पहुँच सके जहां इन्हें जाना था।
आप आश्चर्य से भर जाईएगा कि यहाँ इनका ईलाज मात्र 450 रूपये में हो गया।लेकिन दो अस्पताल में हज़ारों की चपत के बाद।
ऑटो वालों का अस्पताल से 1500 से 2000 रूपये का कमीशन प्रति मरीज़ और उसको अस्पताल के गुणगान के एवज में बंधा रहता है।
अब एक और खुलासा-कई डॉक्टर अपने को गाँव वालों का मसीहा बताकर गांवों में बकायदा निःशुल्क स्वास्थ्य कैम्प कर इनका नाम पता दर्ज कर मोबाइल नंबर भी ले लेते हैं और निःशुल्क का चक्कर इन भोले भाले गाँव वालों के लिए जी का जंजाल साबित हो जाता है।
‘पहल’ के पास कुछ ऐसे तथ्य हैं जिसमें इन अस्पताल के संचालकों ने मरीज़ से हस्ताक्षर करवा इन्हें अस्पताल में भर्ती कराया और दो घंटे बाद डिस्चार्ज कर आयुष्मान का पैसा निकालकर अपनी जेब गरम कर ली इसके बाद फ़र्ज़ी तरीक़े से मरीज़ को फिर तीन या चार दिन बाद बुलाया और डिस्चार्ज फार्म में फिर से हस्ताक्षर करवाकर विदा कर दिया।
अब बात प्रशासन की भूमिका पर-एक जानकार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इस गोरखधंधे में प्रशासन की भूमिका भी पूरी तरह से संदिग्ध है।नए नवेले डॉक्टर जो खुद डोनेशन से डॉक्टर बनकर आ रहे हैं वो मरीज़ों को जानवर मानकर अपना प्रयोग कर रहे हैं यहाँ तक कि आयुष्मान योजना में तो इतनी बड़ी धांधली है कि कुछ बड़े अस्पतालों में ताला लग जाएगा और कुछ डॉक्टर भी जेल की सलाख़ों के पीछे होंगे मगर दुर्भाग्य है कि न तो यहाँ के नेताओं को इस बात से कोई लेना देना है न ही प्रशासन को।”
बहरहाल खुलासे हम जारी रखेंगे आज यहीं तक।
आलोक शुक्ल, संपादक पहल।



