राजनीति में परिवार वाद एक ऐसा शब्द है जिसकी व्याख्या नेता अपने अपने हिसाब से करते रहे हैं।
चाहे कांग्रेस हो या भाजपा,सपा हो या जनता दल या कोई भी क्षेत्रीय पार्टी,सभी में परिवारवाद की राजनीति पर जोर दिया गया है।
कांग्रेस में गांधी परिवार पर भाजपा ने मुखर होकर आरोप लगाए कि कांग्रेस पार्टी खाली गांधी परिवार की ही होकर रह गई है।यूपी में सपा में भी परिवार वाद को लेकर मुद्दा बनाया गया।
आज एक ओर राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा कर रहे हैं साथ ही गांधी परिवार ने कांग्रेस का नया अध्यक्ष परिवार से बाहर का बनाने का निर्णय लेकर भाजपा के आरोपों का मुँहतोड़ जवाब देने का मन अभी से बना लिया है।
परंतु आश्चर्य ये कि छत्तीसगढ में कांग्रेस जहां प्रचंड बहुमत में है वहीं के कुछ नेता पूरे मनोयोग से परिवार वाद की राजनीति में रमे हुए हैं।एक ओर मोदी को स्वयं परिवार वाद का विरोध करते देखा जाता रहा है वो भी मुखर होकर। वहीं इनकी पार्टी के सरगुजा संभाग के चार चार आदिवासी नेता एक साथ पिछले दिनों सरगुजा के अंबिकापुर में प्रेस कांफ्रेंस कर अपना और अपनी पार्टी का गुणगान करते दिखे।
क्या ये तसवीरें भाजपा के संगठन को नहीं दिखीं?
आईए अब एक नज़र इन चारों भाजपा के नेताओं की पृष्ठभूमि पर।
2005 के ज़िला पंचायत चुनाव में स्वर्गीय विजय प्रताप सिंह अध्यक्ष बने जबकि उनके पिता तत्कालीन समय मे भाजपा प्रदेश अध्यक्ष थे।उनकी पत्नी (शिवप्रताप जी की पुत्रवधू) सुमन सिंह सूरजपुर जनपद अध्यक्ष बनीं।दूसरे पुत्र भैयाथान जनपद अध्यक्ष थे।एक अन्य रिश्तेदार चैतराम ओड़गी जनपद अध्यक्ष बनाए गए।
2010 में तत्कालीन मंत्री रामविचार नेताम ने अपनी पत्नी पुष्पा नेताम को अविभाजित सरगुजा ज़िले का ज़िला पंचायत का अध्यक्ष बनाया।पुनः ज़िला विभाजन के बाद 2015 में नवगठित बलरामपुर ज़िला पंचायत के अध्यक्ष पद पर आसीन करवाया।अभी 2020 के चुनाव में वे वाड्रफनगर से ज़िला पंचायत सदस्य हैं जबकि रामविचार नेताम की पुत्री निशा नेताम वर्तमान बलरामपुर ज़िला पंचायत अध्यक्ष हैं।
अब भाजपा के पूर्व विधायक पर एक नज़र
सिद्धनाथ पैकरा की पत्नी उद्धेश्वरी पैकरा शंकरगढ़ जनपद अध्यक्ष और बाद में बलरामपुर ज़िला पंचायत सदस्य के रूप में 2 दशक से कार्यरत हैं।
वहीं पूर्व गृहमंत्री रामसेवक पैकरा ने पहले पत्नी शशिकला पैकरा फिर बाद में 2020 में पुत्र लवकेश पैकरा को ज़िला पंचायत सदस्य बनाया।भाजपा शासन काल के दौरान भाजपा के विधायक के विजयनाथ सिंह के पुत्र शैलेश सिंह लुंड्रा और पूर्व विधायक व सांसद कमलभान सिंह के पुत्र देवेंद्र सिंह मरावी लखनपुर जनपद के अध्यक्ष बनाए गए।
यदि भाजपा को भूपेश बघेल जैसे ज़मीनी नेता से दो दो हाथ करना है तो उसे स्वयं अपनी पार्टी के इन तथाकथित झूठे सिद्धांत की दुहाई देने वाले नेताओं व इनके परिजनों की असीमित महत्वाकांक्षाओं पर सख्ती से अंकुश लगाना होगा।
कई लोगों का स्पष्ट कहना है कि ” परिवारवाद की राजनीति के कारण ही उत्तरी छत्तीसगढ के सरगुजा संभाग में भाजपा रसातल में चली गई,इससे तमाम योग्य व कर्मठ आदिवासी नेताओं में छिपी हुई असीम संभावनायें हमेशा हमेशा के लिए ख़त्म कर दी गईं।”
छत्तीसगढ में भी कांग्रेस के कुछ नेता परिवार वाद की राजनीति किए पर वर्तमान में सूबे के मुखिया भूपेश बघेल ने अपने परिजनों को कभी भी अपने कार्यक्रम या पार्टी के कार्यक्रम में नहीं रखा ये प्रशंसनीय है।
जिस तरह वहीं भाजयुमो के नए अध्यक्ष के रूप में भाजपा संगठन ने रवि भगत जैसा जुझारू युवा एक ज़मीनी स्तर पर खोजा है ठीक इसी तरह की कवायदें ही भाजपा को यहां कांग्रेस के मुकाबले खड़ा करने में कारगर होंगी।