आरएसएस की बड़ी और बहुप्रतीक्षित राष्ट्रीय बैठक कल से बैंगलुरु में शुरू हो गई है।ये बैठक तीन दिन तक चलेगी।
संघ प्रमुख मोहन भागवत और दूसरे नंबर के होसबोले जी के मंच पर आसीन होते ही पूरे देश में और सबसे बड़ी पार्टी भाजपा समेत विपक्षी दलों के अंदरखाने एक हलचल सी मच गई है। (संपादकीय आलोक शुक्ल )
इस बैठक के बाद देश में भाजपा के नए अध्यक्ष का नाम कुछ ही दिनों बाद सबके सामने आ जाएगा जिस पर पूरे संगठन को बेसब्री से इंतज़ार है।
वहीं कई राज्यों में संगठन महामंत्री से लेकर और भी फेरबदल किए जायेंगे।इसमें छत्तीसगढ के वर्तमान प्रदेश महामंत्री पवन साय को छत्तीसगढ से विदाई के संकेत भी मिल रहे हैं।हालांकि पवन साय को पदोन्नति देकर ही विदा किया जा सकता है मगर संगठन में अंदरखाने ही उनको लेकर अब आलोचना भी होने लगी है इससे इंकार नहीं किया जा सकता।
सूत्रों की मानें तो छत्तीसगढ़ में 2018 में भाजपा की बेहद शर्मनाक हार को लेकर भाजपा के संगठन के साथ साथ संघ ने भी गंभीरता से मंथन किया था। इसी का परिणाम है कि 2023 में छत्तीसगढ़ में भाजपा की अच्छे बहुमत से सरकार बनी।
लेकिन इसके बाद भी यहाँ के संगठन और संघ से भाजपा में संगठन की ज़िम्मेदारी निभा रहे एक दो बड़े नाम की चर्चा बीच बीच में संघ के मुख्यालय नागपुर में पहुंचती रही और ये नकारात्मक रूप में ही पहुंची।
छत्तीसगढ़ में पिछली भूपेश सरकार के विदा होने के बाद भ्रष्ट तंत्र और अवैध उगाही के साथ साथ अनियंत्रित नौकरशाही को सुधारने की बात तो मंच से की गई लेकिन बहुत मामूली सुधार ही हो पाया।
सबसे गंभीर बात तो ये कि भूपेश सरकार के समय के मुख्य सचिव अमिताभ जैन, तत्कालीन डीजीपी अशोक जुनेजा और भ्रष्टाचार के शिरोमणि कहे जाने वाले वन विभाग के पीसीसीएफ राव को शांत, विनम्र विष्णुदेव साय की सरकार में भी पदासीन रखा गया।जबकि भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह समेत पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर,बृजमोहन अग्रवाल समेत कई नेताओं ने इन विवादित अधिकारियों को हटाने की माँग तक विपक्ष में रहते चुनाव आयोग और केंद्र सरकार से की थी।
मगर सत्ता में आते ही ये तीनों बड़े अधिकारी इस सरकार में भी प्रभावी बने रहे इसे लेकर संगठन के पवन साय की अंदरखाने और सोशल मीडिया पर तीखी आलोचना तक हुई।
और तो और अशोक जुनेजा को रिटायरमेंट के बाद 6 महीने का एक्सटेंशन भी दे डाला और अंदर ही अंदर विरोध बढ़ता देख इनके रिटायरमेंट के बाद साफ़ सुथरी छवि के आईपीएस अरूण देव गौतम को डीजीपी बना कर सरकार ने आमजन के बीच एक अच्छा संदेश दिया।
वहीं मुख्य सचिव के रूप में अमिताभ जैन की सुस्त चाल से पूरे प्रदेश में काम करने वाले आईएएस भी अपना सर्वश्रेष्ठ दे पाने में असफल साबित हो रहे हैं।
प्रतिनियुक्ति पर जाकर राज्य वापस आने वाले आईएएस में ऋचा शर्मा, अमित कटारिया ने यहाँ नकेल कसने में काफ़ी हद तक सफलता पाई है लेकिन जब मुखिया ही सुस्त और ढीला ढाला हो तो डबल इंजन के बाद भी सरकार की गाड़ी अपनी गति नहीं पकड़ पा रही है।
सबसे बड़ी बात ये है कि भूपेश सरकार के समय के भी कुछ अच्छे आईएएस और आईपीएस को लूपलाइन में रखा गया है जबकि उन्हें अपनी विचारधारा को बताकर फील्ड में भेजा जाता तो अप्रत्याशित परिणाम सामने आ पाते।
वहीं अमिताभ जैन रिटायरमेंट के क़रीब हैं मगर सरकार बनते ही इनकी जगह किसी और को मुख्य सचिव बनाया गया होता तो अन्य अधिकारियों के बीच भी कड़ा संदेश जाता।
रिचा शर्मा,मनोज पिंगुआ के साथ साथ सुब्रत साहू को भी नई ज़िम्मेदारी देना और नए सिरे से छत्तीसगढ़ को गढ़ने की क़वायद कर काम करने वाले आईएएस व आईपीएस अधिकारियों को मैदान में उतारने में सरकार को अब देर नहीं करनी चाहिए।
वहीं वन विभाग के मुखिया पीसीसीएफ राव के काले कारनामों की लंबी फ़ेहरिस्त केंद्र सरकार और इसके बाद जांच एजेंसियों तक पहुंचने के संकेत मिल रहे हैं।वन विभाग में भी नए पीसीसीएफ को लेकर नियमानुसार वरिष्ठ आईएफएस अधिकारियों का पैनल बना इस दिशा में भी काम करके विष्णुदेव साय सरकार कुछ बड़ी योजनाओं का क्रियान्वयन कर छत्तीसगढ़ को देश में एक नई पहचान दिला सकती है।

सबसे महत्वपूर्ण ये है कि छत्तीसगढ में 2023 का विधानसभा चुनाव भाजपा की केंद्रीय टीम ने जी जान लगाकर जुटाया और इसमें यहां के इक्का दुक्का स्थानीय नेताओं को छोड़कर बाकी मैदान पर जीरो ही दिखे क्योंकि आमजन भूपेश बघेल के दौर में सरकार से इस कदर चिढी कि उसने भूपेश का भरोसा न कर भाजया पर भरोसा किया और कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा।
अब इस जीत को छत्तीसगढ के भाजपा नेता अपनी जीत का भ्रम पालने लगे जबकि हक़ीक़त ये थी कि मोदी शाह ने यहां ओम माथुर और सिद्धार्थ नाथ सिंह को यहां भेजकर कांग्रेस पर चोट करने की विशेष रणनीतिकार के तौर पर भेजा था।
इस पूरे भूपेश कार्यकाल में भाजपा के तथाकथित दिग्गज भूपेश सरकार के कारनामों का विरोध करने का साहस तक नहीं जुटा पाए थे और किसी कंदरा गुफा में जाकर इसलिए छिपे रहे क्योंकि इन छुटभैय्यों और ज़िले के तथाकथित नेताओं के भ्रष्टाचार की पूरी फाईल भूपेश सरकार के पास बकायदा सहेज कर रखी गई थी जिससे ये दुबके हुए ही रहते थे इस बात की जानकारी मोदी को थी इसलिए यहां भूपेश सरकार के बड़े भ्रष्टाचार पर एजेंसियों के माध्यम से बज्र प्रहार कर कांग्रेस की कमर तोड़कर रख दी।


बहरहाल कई जगह भाजपा के ये तथाकथित नेता सरकार बनते ही गुफा से निकलकर फिर से झूठी दहाड़ मारकर भ्रम पाल रहे हैं कि बीजेपी हमी से है इस पर भी भाजपा के केंद्रीय संगठन को और पीछे से संघ को कड़ी नज़र रखकर इस तरह के नेताओं के पर कतर कर ही रखने होंगे।
आलोक शुक्ल, संपादक,‘पहल’